चीन में भारतीय आयुर्वेद का लाभ उठा रहे लोग, जानें केरल से चाइना तक के सफर की कहानी – Utkal Mail

बीजिंग। केरल के एक आयुर्वेदिक चिकित्सक दंपति, डॉ. चांगमपल्ली किजक्किलाथ मोहम्मद शफीक और उनकी पत्नी डॉ. डेन (36), चीन में भारतीय आयुर्वेद की प्राचीन चिकित्सा पद्धति को स्थानीय लोगों तक पहुंचाकर ख्याति अर्जित कर रहे हैं। विभिन्न सांस्कृतिक और धार्मिक पृष्ठभूमियों से आने के बावजूद, इस दंपति ने आयुर्वेद के माध्यम से एक साझा मिशन अपनाया है। उनका मानना है कि आयुर्वेद और पारंपरिक चीनी चिकित्सा (टीसीएम) में कई समानताएं हैं, खासकर जड़ी-बूटियों और समग्र उपचार पर दोनों का ध्यान केंद्रित होने के कारण। वे न केवल आयुर्वेद को चीन में लोकप्रिय बना रहे हैं, बल्कि इसके और टीसीएम के बीच एक सांस्कृतिक पुल भी स्थापित कर रहे हैं।
डॉ. शफीक का संबंध 600 वर्ष पुराने ‘चांगमपल्ली गुरुक्कल’ आयुर्वेदिक परिवार से है, जिसके पूर्वज तुलु ब्राह्मण थे और शाही परिवारों के लिए चिकित्सक के रूप में सेवा देते थे। डॉ. शफीक बताते हैं कि उनके परिवार के कुछ लोग इस्लाम धर्म में परिवर्तित हो गए, जबकि अन्य हिंदू बने रहे। वे आयुर्वेद के अपने कार्य को अपनी पैतृक विरासत से जोड़कर देखते हैं। वहीं, डॉ. डेन एक ईसाई परिवार से हैं और उन्होंने तिरुवनंतपुरम के केरल विश्वविद्यालय के आयुर्वेद कॉलेज में पढ़ाई की, जहां उनकी मुलाकात डॉ. शफीक से हुई।
डॉ. शफीक का चीन से जुड़ाव 2016 में शुरू हुआ, जब उन्होंने पुडुचेरी में अपने प्रारंभिक करियर के दौरान कई चीनी मरीजों को आयुर्वेदिक उपचार प्रदान किया। इससे प्रेरित होकर उन्होंने ग्वांगझोउ जैसे समृद्ध शहर में नए अवसर तलाशे। ग्वांगझोउ में भारतीय वाणिज्य दूतावास और चीनी चिकित्सा संस्थानों के सहयोग से उन्होंने स्थानीय लोगों का विश्वास जीता और अपनी पहचान बनाई।
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