गजपति: राज्य विहीन राजा पुस्तक का विमोचन
नई दिल्ली, दिनांक २१.०९:’भगवान जगन्नाथ के प्रथम सेवक (आद्य सेवक) गजपति को अपने लिए किसी राज्य की आवश्यकता नहीं है।’ यह कहना है प्रसिद्ध विद्वान डॉ कर्ण सिंह का। दिल्ली में अंग्रेजी में लिखित ‘गजपति: किंग विदाउट किंगडम’ पुस्तक के लोकार्पण समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित डॉ सिंह ने कहा कि ब्रह्मांड नियंता ईश्वर श्री जगन्नाथ के करीबी सहयोगी के रूप में, पूरा ब्रह्मांड उनके आध्यात्मिक शासन के अधीन है। डॉ. सिंह ने कहा कि ओड़िशा राज्य के तमाम उतार-चढ़ावों के बावजूद, गजपति अपने सर्वोच्च कद को बरकरार रखे हुए हैं और उनकी प्रमुख स्थिति अप्रभावित रही है।
पुस्तक विमोचन समारोह को संबोधित करते हुए गजपति महाराजा दिब्यसिंह देब ने गजपति की पदवी को परिभाषित करते हुए कहा कि ये राज्य की तरफ से लोगों पर शासन करने को अपने दैवीय कर्तव्य समझनेे वाले प्रशासक हैं। उन्होंने बताया कि गजपति स्कंद पुराण में अपनी उत्पत्ति पाते हैं। महाराजा श्री
देब ने भारत की वैदिक संस्कृति के प्रकाश में स्थिति की कल्पना करने की सलाह दी, जहां इसकी जड़ें हैं।
इस पुस्तक के स्मारकीय, ऐतिहासिक और समकालीन महत्व की सराहना करते हुए अतिथि वक्ता पूर्व प्रशासक अमरेंद्र खटुआ ने ओडिशा की जीवंत परंपरा और महान संस्कृति में गजपति की भूमिका को रेखांकित किया।
नई दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में प्रकाशक कोणार्क पब्लिशर्स और ओडिशा फोरम द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित इस विमोचन समारोह में सैकड़ों गणमान्य लोगों ने भाग लिया।
स्वागत भाषण में ओड़िशा फोरम के अध्यक्ष वरिष्ठ प्रशासक गोकुल पटनायक ने १७ साल की कम आयु में कर्ण सिंह और दिब्यसिंह देब दोनों का महाराजा बनना और दोनों पहली बार किसी एक मंच पर एकत्रित होने को एक विशेष संयोग बतातेे हुए इस महामिलन को ऐतिहासिक बताया ।
गजपति के चर्चित लेखक, पूर्व राजस्व सेवा अधिकारी अशोक बल ने पुस्तक के बारे में एक संक्षिप्त परिचय और अंतर्दृष्टि दी।
कोणार्क पब्लिशर्स के एमडी के. पी. आर. नैयर की ओर से जीज़ा जॉय ने धन्यवाद प्रस्ताव प्रस्तुत किया। ओडिशा फोरम के सचिव रवि पाणी ने बैठक की कार्यवाही को सुचारू रूप से संचालित किया।
गजपति पुस्तक पुरी के शासकों की उत्पत्ति, आभा और विकास पर प्रकाश डालती है। गजपति की स्थिति अप्रतिम और प्रकृति में अद्वितीय है क्योंकि यह एक साथ राजा के साथ-साथ मुख्य सेवक होने को भी दर्शाता है। गहरे शोध और कुशल दस्तावेज़ीकरण की ये असामान्य कृति, गजपति के जीवन और विरासत पर ध्यान केंद्रित करती है, जो १०वीं शताब्दी से इस प्रतिष्ठित सिंहासन पर आसीन हैं।१४३५ ईस्वी से १४५७ ईस्वी में कपिलेन्द्र देब के शासनकाल के दौरान उड़ीसा राज्य उत्तर में गंगा से दक्षिण में कावेरी तक फैला हुआ था। १५६८, १७५८और १८०३ में ब्रिटिश के आगमन के साथ राज्य में गिरावट दिखाई दी और हालात ऐसे हुए कि आखिरकार गजपति एक बिना राज्य के राजा होकर रह गए। लेकिन भगवान जगन्नाथ के साथ गजपति का घनिष्ठ संबंध फलता-फूलता रहा। रथ यात्रा के दौरान सोने की झाड़ू से रथों की सफाई करना उन्हें हमेशा श्रद्धालुओं के बीच सर्वोच्च सम्मान देती रही है। भगवान श्री जगन्नाथ के साथ दीर्घ परीक्षित बंधन ने गजपति को आम जनता के बीच सर्वदा पूजन की स्थिति में रखते हुए इनको चलंति प्रतिमा की मान्यता दी ।
इस अवसर पर उपस्थित प्रमुख हस्तियों में महारानी लीलाबती पट्टमहादेई के अलावा जस्टिस अनंग कुमार पट्टनायक, जस्टिस हृषीकेश रॉय, जतिन दास, पूर्व केंद्रीय मंत्री भक्त चरण दास, डी.पी. बागची, ए.आर. नंदा, डॉ. सत्यानंद मिश्र, सत्यगोपाल राजगुरु, रविन्द्र सिंह, अरूण पंडा, मानस राॅय, बी.के.अग्रवाल, रवि श्रीनिवासन, रमारानी होत्ता, ज्योत्सना राय, देबजीत रथ, सरिता और जयदेव सरंगी, प्रसन्न दाश, टीटा पट्टनायक, अशोक प्रधान, दिपाली पाणी, अधिवक्ता संजीव मोहंती, रबी प्रधान, देवेंद्र माझी, गोवर्धन ढल, देवेंद्र राउत, नरेंद्र बर, सचिन गर्ग, संतोष राउत, पबन जैन समेत चौधरी रमाकांत दास शामिल थे।
इस पूरी व्यवस्था का प्रबंधन ओडिशा फोरम की आयोजन टीम ने बखूबी से किया, जिसमें संयुक्त सचिव डॉ. निवेदिता गिरी, कोषाध्यक्ष प्रभास प्रधान और गवर्निंग बॉडी के सदस्य अबनी साहू, बिमल पंडा, निर्मल पट्टनायक और देबराज मोहंती भी शामिल थे।