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प्रमुख राजनीतिक घटनाओ में बनाम कल्याणकारी योजनाओं के चलते हार जीत दिखाई दी पटियो में,जानिए – Utkal Mail


हिंदी पट्टी में हुए विधानसभा चुनावों में भाजपा की जीत और कर्नाटक एवं तेलंगाना में कांग्रेस की जीत के साथ उत्तर बनाम दक्षिण की बहस छिड़ गई है।

साल 2023 के दौरान राजनीतिक दलों ने ‘मुफ्त उपहार’ बनाम ‘कल्याणकारी योजना’ पर बहस को सुलझाया। पिछले साल के मध्य में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने 12 महीनों के दौरान भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और कांग्रेस ने 9 विधानसभा चुनावों में मतदाताओं को रिझाने के लिए बढ़-चढ़कर कल्याणकारी योजनाओं का वादा किया।

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महिला मतदाताओं को अपनी ओर करने के लिए राजनीतिक दलों के बीच वादों के लिए तगड़ी प्रतिस्पर्धा दिखने के आसार हैं। साल 2023 के दौरान भाजपा और कांग्रेस यानी दोनों प्रमुख दलों ने महिला मतदाताओं को अलग अलग वोटर के रूप में लुभाया राज निति में ऐसा शायद ही पहले कभी हुआ होगा। अप्रैल से मई के बीच कर्नाटक विधानसभा चुनाव के दौरान महिलाओं के लिए कांग्रेस द्वारा की गई गारंटी को भाजपा के मुकाबले अधिक समर्थन मिला। हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक में जीत के बाद कांग्रेस के पास आखिरकार मोदी की रणनीतियों को टक्कर देने का पर्यापत करण था।

उन्होंने लोगों अपना ‘परिवारजन’ कहकर संबोधित किया और महिलाओं के नेतृत्व में विकास के बारे में बात की। उन्होंने बताया कि उनकी सरकार का लक्ष्य ‘दो करोड़ लखपति दीदी’ तैयार करने की है। प्रधानमंत्री ने महिला आरक्षण विधेयक पारित कराने के लिए संसद का विशेष सत्र बुलाने की पहल भी की।

दिसंबर आते-आते भाजपा ने तीन प्रमुख राज्यों- छत्तीसगढ़ , मध्य प्रदेश और राजस्थान- में कांग्रेस की गारंटी को ‘मोदी की गारंटी’ से मात दे दी। पाटी की जीत की गारंटी का मुख्य आकर्षण उसकी महिला केंद्रित योजनाएं थीं। आंकड़ों के अनुसार राज्यों में कांग्रेस के मुकाबले करीब 4 फीसदी अधिक महिलाओं ने भाजपा को वोट दिया।

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इस साल भाजपा कैडर ने भारत में जी20 शिखर सम्मेलन की मेजबानी करने के लिए प्रधानमंत्री के नेतृत्व की सराहना की। पार्टी ने अपने कार्यकर्ताओं के जरिये विकसित भारत संकल्प यात्रा के दौरान नामांकन बढ़ाकर सरकारी योजनाओं के शत प्रतिशत लाभ सुनिश्चित करने में मदद की। साथ ही अयोध्या में राम मंदिर के अभिषेक को सफल बनाने के लिए भी तत्पर किया है।

विधान सभा चुनावों में भाजपा की जीत और कर्नाटक एवं तेलंगाना में कांग्रेस की जीत के साथ उत्तर बनाम दक्षिण की बहस छिड़ गई है। अब नए साल 2024 में ही पता चलेगा कि क्या भाजपा दक्षिण के मतदाताओं एवं अल्पसंख्यकों के बीच कितनी पैठ बना पाती है।


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