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राज्यों, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों की तुच्छ याचिकाओं से तंग आ चुके हैं: उच्चतम न्यायालय – Utkal Mail

नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि वह बार-बार चेतावनी के बावजूद विभिन्न राज्य सरकारों और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों द्वारा दायर की जा रहीं ‘‘तुच्छ याचिकाओं’’ से तंग आ चुका है। न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति के वी विश्वनाथन की पीठ ने कहा कि ऐसा इसलिए हो रहा क्योंकि राज्य सरकारों या सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (पीएसयू) के अधिकारियों को मुकदमेबाजी का खर्च व्यक्तिगत रूप से वहन नहीं करना पड़ता,लेकिन न्यायालय पर ऐसे तुच्छ मामलों का बोझ पड़ रहा है। 

पीठ ने यह बात झारखंड सरकार द्वारा एक सरकारी कर्मचारी के मामले में दायर अपील पर नाराजगी जताते हुए कही, जिसमें उसने सेवा से अपनी बर्खास्तगी को चुनौती दी है। शीर्ष अदालत ने कहा, ‘‘हम विभिन्न राज्य सरकारों और सार्वजनिक उपक्रमों द्वारा दायर की गईं ऐसी तुच्छ विशेष अनुमति याचिकाओं से तंग आ चुके हैं।’’ 

पीठ ने कहा, ‘‘हम पिछले छह महीने से यह कह रहे हैं। यह काफी है।’’ इसने कहा कि चेतावनियों के बावजूद विभिन्न राज्य सरकारों और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों की ओर से पेश वकीलों ने ऐसी तुच्छ याचिकाएं दायर न करने की कोई मंशा नहीं दिखाई है। इसने अपने आदेश में कहा, ‘‘हम इस मुद्दे के संबंध में राज्य सरकारों और सार्वजनिक उपक्रमों के रवैये में सुधार की कमी देख रहे हैं।’’ 

पीठ ने झारखंड सरकार की अपील को खारिज कर दिया और उस पर एक लाख रुपये का जुर्माना लगाया, जिसे आदेश की तारीख से चार सप्ताह के भीतर चुकाना होगा। इसने कहा, ‘‘जुर्माने की राशि में से 50,000 रुपये ‘सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स-ऑन-रिकॉर्ड एसोसिएशन’ (एससीएओआरए) के लिए जमा किए जाएंगे, जिसका उपयोग प्रयोगशाला के लिए किया जाएगा। शेष 50,000 रुपये उच्च न्यायालय बार एसोसिएशन (एससीबीए) अधिवक्ता कल्याण कोष में जमा किए जाएंगे।’’ 

न्यायालय ने कहा कि राज्य सरकारें और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम इस बात की पड़ताल करने के लिए स्वतंत्र होंगे कि कौन से अधिकारी ऐसी गलत याचिकाएं दायर करने के लिए जिम्मेदार हैं और वे उनसे जुर्माने की भरपाई भी कर सकते हैं। झारखंड सरकार ने राज्य उच्च न्यायालय के उस आदेश को चुनौती दी थी जिसमें उसे रवींद्र गोपे की सेवाएं बहाल करने का निर्देश दिया गया था। 

गोपे के खिलाफ अनुशासनहीनता, कर्तव्य में लापरवाही और अपने वरिष्ठों के निर्देशों का पालन न करने के आरोप में विभागीय जांच की गई थी और उस पर 14 अलग-अलग आरोप लगाए गए थे। दो अगस्त, 2011 के आदेश के तहत उसे सेवा से बर्खास्त कर दिया गया। उच्च न्यायालय गोपे की बर्खास्तगी के आदेश से सहमत नहीं था और राज्य सरकार को उसकी सेवा बहाली का आदेश दिया था। राज्य सरकार ने इस फैसले को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी थी। 

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