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Special Story: गोमती नदी को जीवन दे रहे तपोवन आश्रम के प्राकृतिक जलस्रोत – Utkal Mail


विकास शुक्ल, लखीमपुर-खीरी, अमृत विचार। आम तौर पर मैदानी इलाके में प्राकृतिक जल स्रोत होने की कल्पना नहीं की जा सकती, लेकिन खीरी जनपद की सीमा पर हरदोई जिले में स्थित पिहानी अंतर्गत ग्राम पंचायत धोबिया के तपोवन सिद्धाश्रम में एक-दो नहीं, दर्जनों प्राकृतिक जलस्रोत न सिर्फ यहां की रमणीयता को बढ़ाते हैं। बल्कि पास से निकली गोमती नदी को जीवनदान दे रहे हैं। 

गुलाब जामुन के लिए मशहूर कस्बा मैगलगंज से 16 किलोमीटर दूर दक्षिण दिशा में स्थित बियाबान जंगल में यह आश्रम स्थित है। इस आश्रम को सिद्ध पुरुष स्वामी तारेश्वरानंद (नेपाली बाबा) ने बनाया था। वर्तमान में उनके शिष्य स्वामी नारायणानंद यहां के महंत हैं, जिनकी देखरेख में मंदिर का जीर्णोद्धार कराया जा रहा है। महंत के बुलावे पर वर्ष 2018 में यहां आए तत्कालीन डीएम पुलकित खरे ने अनेक जलस्रोत देखे तो बहुत प्रभावित हुए। 

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उन्होंने सबसे बड़े जल स्रोत के सौंदर्यीकरण और उसे पर्यटन के लिहाज से बनाने के लिए अभियंताओं की टीम बनाई। उनके प्रयास से 17 अगस्त 2019 में प्राकृतिक जल स्रोत को सौंदर्यीकरण हो गया, जिसका उन्होंने लोकार्पण किया। सौदर्यीकरण के बाद प्राकृतिक जलस्रोत के चारों और सजावटी पत्थर लगाकर आकर्षक कुंड बनवा दिए। जलस्रोत के कुंड को अलग कर दिया ताकि उसे नुकसान न पहुंचे। 

पुलकित खरे तपोवन ने सिद्ध आश्रम में क्षीर सागर, शांति कुटी, पर्यटन विश्राम स्थल, सत्संग स्थल सहित कई मूर्तियों और बैठने के लिए बेन्चें आदि बनवाईं। आश्रम के महत्व को दर्शाने वाले शिलापट भी लगवाए। उन्होंने सफाई कराकर प्राकृतिक जल स्रोतों को भी खुलवाया। इससे यहां का पर्यटन भी बढ़ा है। गोमती संरक्षण अभियान के अगुआ और गोमती नदी के आसपास की सांस्कृतिक विरासत को संकलित कर रहे सुशील सीतापुरी कहते हैं कि उन्होंने अपने अध्ययन में यही निष्कर्ष निकाला है। इन जलस्रोतों का पानी पूरे साल नदी में गिरता रहता है।

शिवलिंग से हर समय निकलती रहती है जलधारा
आश्रम में स्थित शिव मंदिर के शिवलिंग से हर समय जलधारा निकलती रहती है, जिसे देखने लोग दूर-दूर से आते हैं। महंत कहते हैं कि यह एक चमत्कार है। जलधारा प्राकृतिक जलस्रोत का हिस्सा है या कुछ और, इसकी जानकारी आज तक नहीं हो सकी है।

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मंदिर का कराया जा रहा जीर्णोद्धार
आश्रम में देवी मंदिर के रूप में दस महाविद्याओं के मंदिर का निर्माण कराया जा रहा है। इसके निर्माण के लिए श्रद्धालु आगे आए हैं तो वहीं गांव के अनेक लोग सेवा कार्य में जुटकर मंदिर निर्माण के काम में लगे हैं।

16 फुट के नर कंकाल के मिलने का भी है अद्भुत रहस्य
महंत नारायणानंद के मुताबिक वह आश्रम में 1973 से सेवारत हैं। वर्ष 1982 में खुदाई के दौरान यहां 16 फुट का नरकंकाल मिला। ऐसी मान्यता है कि यह कंकाल धौम्य ऋषि का हो सकता है। इस मान्यता पर नर कंकाल को समाधिस्थ कर यहां पर स्थान बना दिया गया, जो सिद्ध बाबा के नाम से प्रसिद्ध हुआ। यहां दूरदराज से लोग आते हैं और तमाम धार्मिक आयोजन होते रहते हैं।

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ऐसे पहुंचे तपोवन
लखनऊ-दिल्ली नेशनल हाइवे-24 पर स्थित मैगलगंज से 16 किलोमीटर दूर बरगांवा होते हुए तपोवन सिद्धाश्रम पहुंच सकते हैं। लखनऊ से दूरी 130 किलोमीटर है। वहीं हरदोई जिला मुख्यालय से वाया पिहानी 35 किलोमीटर, सीतापुर से वाया महोली होते हुए 42 किमी, शाहजहांपुर से वाया पिहानी होते हुए 52 किमी पर स्थित है।

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महाभारत काल से जुड़ाव, नहीं मिल सका पर्यटन स्थल का दर्जा
महंत नारायणानंद को इस बात की पीड़ा है कि महाभारत काल से इस स्थान को जुड़ाव होने के बाद भी आज तक इसे पर्यटन स्थल का दर्जा नहीं मिल पाया। हालांकि उन्होंने पर्यटन मंत्रालय को अनेक प्रस्ताव भी भिजवाए। वह बताते हैं कि धोबिया का नाम कभी धौम्या था, जो अपभ्रंश होकर धोबिया हो गया। पांडवों के कुल पुरोहित धौम्य ऋषि बनवास के दौरान वनवास के दौरान भी पांडवों के साथ थे। 

लोक मान्यता है कि वनवास के दौरान पांडव यहां विचरण करते हुए आए तो यहां के रमणीय जंगल को देखकर यहां रुक गए। धौम्य ऋषि ने यहां तपस्या की थी, इसलिए इस तपोवन का नाम धौम्य आश्रम पड़ा, जो आगे चलकर बोलचाल की भाषा में बदलकर धोबिया आश्रम हो गया। कहा जाता है कि प्यास लगने पर एक बार अर्जुन ने बाण चलाकर इस धरती से जलस्रोतों की उत्पत्ति की थी। 

प्राकृतिक जल स्रोतों के मामले में तपोवन का कोई विकल्प नहीं
चपरतला खीरी की स्वयंसेवी संस्था सेवा सदन की ओर से सुशील सीतापुरी के संयोजन में ‘ मैं तुम्हारी गोमती हूं अभियान’ की शुरुआत दिसंबर 2019 से की गई। उनके अभियान का उद्देश्य गोमती की सांस्कृतिक विरासत (गोमती के घाट, मंदिर, मेले, परंपराएं, निकटवर्ती गांवों के रहन-सहन आदि) का सर्वेक्षण और संकलन किया है। 

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उनका निष्कर्ष है कि हरदोई जनपद के धोबिया गांव स्थित तपोवन के प्राकृतिक जल स्रोतों से दो किमी दूर बहती गोमती को पूरे साल नियमित जलापूर्ति होती है। इस नाते धोबिया के प्राकृतिक जल स्रोत ही गोमती का ‘वरदान’ हैं। मैदानी क्षेत्र में इन प्राकृतिक जल स्रोतों की बहुतायत में उपलब्धता के मामले में तपोवन (धोबिया) का कोई विकल्प नहीं है। 

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