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Guinness World Records: 195 देशों की महिलाओं की आवाज ने तोडा रिकॉर्ड, भारतीय मूल की अस्मा खान भी शामिल  – Utkal Mail

दिल्ली। भारत मूल की ब्रिटिश रेस्तरां मालिक अस्मा खान 195 देशों की उन महिलाओं में शामिल हैं, जिन्होंने ‘195’ गीत में काम किया है। इस गीत में सबसे अधिक देशों की महिलाओं ने अपनी आवाज दी है और यह ‘गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड्स’ में दर्ज हो गया है। यह गीत लैंगिक समानता के बारे में जागरूकता बढ़ाने और ध्वनि उपचार आवृत्तियों की परिवर्तनकारी शक्ति के माध्यम से लोगों के उत्थान के लिए एक वैश्विक आंदोलन की अलख जगाने के लिए तैयार किया गया है। 

अमेरिकी ग्रैमी-नामांकित और ‘मल्टी-प्लैटिनम’ संगीत निर्माता मेजोर, मार्टिना फुच्स, किंग्सले एम, ब्रैंडन ली एवं आरोन डावसन द्वारा स्थापित ‘फ्रीक्वेंसी स्कूल’ ने शक्तिशाली और सार्वभौमिक अभियान तैयार किया है, जिसका प्रीमियर 20 से 24 जनवरी तक चले स्विट्जरलैंड के दावोस-क्लोस्टर्स में विश्व आर्थिक मंच (डब्ल्यूईएफ) की 55वीं वार्षिक बैठक के दौरान किया गया। गीत ‘195’ की कार्यकारी निर्माता फुच्स ने कहा, ‘यह हमेशा से मेरा सपना रहा है कि मैं इतिहास का पहला ऐसा गीत बनाऊं जिसमें धरती के हर देश को शामिल किया गया हो। 

हमारा लक्ष्य लैंगिक समानता तथा महिलाओं और लड़कियों के अधिकारों की वकालत करने एवं मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से जूझ रहे लोगों की मदद करने के लिए इस अग्रणी और अभूतपूर्व पहल में सभी क्षेत्रों की 195 आम महिलाओं को एकजुट करना था।’ उन्होंने कहा, ‘यह रिकॉर्ड तोड़ना तो बस शुरुआत है। हम अपनी दुनिया को और भी शांतिपूर्ण जगह बनाने के वैश्विक मिशन पर हैं।’ ब्रिटेन में प्रवासी और नेटफ्लिक्स के शेफ़्स टेबल की स्टार अस्मा खान वहां की सबसे प्रमुख महिला शेफ़ में से एक हैं। 

वह ‘दार्जिलिंग एक्सप्रेस’ की संस्थापक और मालिक हैं, जो (दार्जिलिंग एक्सप्रेस) लंदन में एक प्रसिद्ध भारतीय रेस्तरां है। यह रेस्तरां में रसोई में केवल महिलाकर्मियों तथा घरेलू भारतीय व्यंजनों के लिए जाना जाता है। इस रेस्तरां में खान के परिवार के व्यंजनों और कोलकाता में उनसे संबंधित व्यंजन परोसे जाते हैं। 

टाइम पत्रिका ने 2024 में उन्हें दुनिया के 100 सबसे प्रभावशाली लोगों में से एक नामित किया। वह संयुक्त राष्ट्र विश्व खाद्य कार्यक्रम के लिए एक शेफ अधिवक्ता हैं और उनके पास क्वींस कॉलेज, ऑक्सफ़ोर्ड और किंग्स कॉलेज, लंदन से मानद फैलोशिप हैं, जहाँ उन्होंने ब्रिटिश संवैधानिक कानून में पीएचडी अर्जित की।

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