धर्म

आज भंवरेश्वर में शिवभक्तों का तांता, महादेव पर जलाभिषेक करने दूर दूर से आते हैं लोग, जानिए इसकी पौराणिकता  की पूरी कहानी  – Utkal Mail


उमेश गुप्ता, निगोहां अमृत विचारः निगोहां स्थित भंवरेश्वर मंदिर का इतिहास ही नहीं बल्कि श्रद्धालुओं की अगाध श्रद्धा है। यह शिवायल निगोहां से करीब 6 किलोमीटर सई नदी किनारे स्थित है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार द्वापर में अज्ञातवास के दौरान पांडव माता कुंती के साथ यहां आए थे।

कुंती शिव पूजन के बिना अन्न-जल ग्रहण नहीं करती थीं। तब भीम ने यहां शिवलिंग की स्थापना की। वर्षों बाद यह शिवलिंग मिट्टी में दब गया था। सैकड़ों वर्ष बाद सुदौली रियासत के राजा को स्वप्न में इस शिवलिंग का पता चला। जिसके बाद खुदाई कर मंदिर का निर्माण करवाया गया।

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मुख्य पुजारी सुनील बाबा ने बताया कि मुगल शासक औरंगजेब मंदिर को नष्ट करने आया था। जब उसने शिवलिंग को तोड़ने की कोशिश की, तभी लाखों भंवरों ने मुगल सेना पर हमला बोल दिया था। इस चमत्कारी घटना से घबराकर औरंगजेब को पीछे हटना पड़ा। हथोड़े की चोट से शिवलिंग का एक हिस्सा आज भी टूटा हुआ दिखता है। तब से इस मंदिर का नाम भंवरेश्वर पड़ा। 

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मुगलों के बाद अंग्रेजों ने मंदिर की ऐतिहासिकता को जांचने के लिए खुदाई कराई, लेकिन खुदाई शुरू होते ही एक बार फिर बड़ी संख्या में निकले भंवरे मजदूरों और अफसरों पर टूट पड़े। डर के मारे अंग्रेज अफसरों को खुदाई रोकनी पड़ी और वे वहां से चले गए। बाद में सुदौली के राजा रामपाल सिंह की पत्नी गणेश साहिबा ने मंदिर का जीर्णोद्धार कराया। सई नदी के तट पर बसा यह मंदिर न केवल धार्मिक रूप से बल्कि ऐतिहासिक दृष्टिकोण से भी बेहद महत्वपूर्ण है। माना जाता है कि यहां सच्चे मन से मांगी गई हर मुराद पूरी होती है।

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