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पंतनगर: करवा चौथ का त्योहार: पूजा विधि और विशेष ज्योतिषीय योग – Utkal Mail

पंतनगर, अमृत विचार। जीवनसाथी की दीर्घायु के लिए सुहागन स्त्रियों का आस्था का प्रतीक करवा चौथ (करक चतुर्थी) त्योहार 20 अक्टूबर को मनाया जाएगा। यह पर्व कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है, जब महिलाएं अखंड सौभाग्य और अपने पति की अच्छी सेहत के लिए निर्जला व्रत रखती हैं।

ज्योतिषाचार्या डॉ. मंजू जोशी के अनुसार, इस वर्ष करवा चौथ पर विशेष योग बन रहा है। चंद्र देव वृषभ राशि में उच्च स्थिति में रहेंगे, जबकि देव गुरु बृहस्पति के साथ उनकी युति गजकेसरी योग का निर्माण करेगी। रोहिणी नक्षत्र के प्रभाव से महिलाएं विशेष मानसिक शांति अनुभव करेंगी। शनि की स्थिति कुंभ में सुख और समृद्धि में वृद्धि करेगी, और सूर्य-बुध की युति से बुधादित्य योग का निर्माण भी हो रहा है।

 पूजा का समय

चतुर्थी तिथि के क्षय के साथ, करवा चौथ पूजा का शुभ मुहूर्त शाम 5:46 से 7:02 बजे तक रहेगा। चंद्रोदय का समय रात 8:49 बजे होगा, जो विभिन्न राज्यों में अलग-अलग हो सकता है। 

सूर्योदय से पहले नित्य कर्म से निवृत्त होकर स्नान करने के बाद सोलह श्रृंगार करें और उपवास का संकल्प लें। सुबह सूर्योदय से लेकर चंद्रोदय तक निर्जला उपवास रखें और चंद्र दर्शन के बाद व्रत का पारण करें।

पूजा विधि

करवा चौथ पर शिव परिवार की पूजा का विशेष विधान है। पूजा के मुहूर्त में चैथ माता या मां गौरा, भगवान शिव और गणेश जी को आसन पर बिठाकर रोली, कुमकुम, अक्षत, पुष्प, धूप-दीप, नैवेद्य, पंचामृत, पंच मेवा और पंच मिठाई अर्पित करें। मिट्टी के पात्र में जल भरकर घी का अखंड दीपक जलाएं और व्रत कथा पढ़ें। पूजा सामग्री को किसी सुहागन महिला को भेंट स्वरूप दें। 

पूर्ण चंद्रोदय होने पर छलनी से चंद्र दर्शन करें और पति के हाथ से जलपान कर उपवास का पारण करें।

छलनी से चंद्र दर्शन का महत्व

करवा चौथ के दिन सुहागन महिलाएं छलनी से पहले चंद्र दर्शन करती हैं, फिर अपने पति को निहारती हैं। यह प्रथा पति की लंबी उम्र की कामना करने के लिए होती है। छलनी से चंद्र को देखने का अर्थ है प्रेम की शुद्धता को बनाए रखना, ठीक उसी प्रकार जैसे छलनी से निकलने के बाद अशुद्धियां अलग हो जाती हैं। 

इस प्रकार, करवा चौथ का पर्व न केवल पति-पत्नी के रिश्ते को मजबूत करता है, बल्कि परिवार में सुख और समृद्धि की कामना भी करता है।

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