'मस्जिदों में मंदिरों की तरह चढ़ावा नहीं चढ़ता', कपिल सिब्बल की दलील पर बोले CJI गवई- मैं दरगाह गया हूं पर… – Utkal Mail

नई दिल्ली, अमृत विचारः वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर मंगलवार, 20 मई, 2025 को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान सरकारी संपत्तियों की पहचान का मुद्दा प्रमुखता से उठा। याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने तर्क दिया कि मस्जिदों में मंदिरों की तरह चढ़ावा नहीं चढ़ता, बल्कि वक्फ संपत्तियों से प्राप्त आय से मस्जिदों का प्रबंधन होता है। इस पर मुख्य न्यायाधीश भूषण रामकृष्ण गवई ने जवाब दिया कि उन्होंने दरगाहों का दौरा किया है और वहां भी चढ़ावा चढ़ते देखा है।
वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 पर पिछली सुनवाई 15 मई को हुई थी, जिसमें मुख्य न्यायाधीश भूषण रामकृष्ण गवई की पीठ ने केंद्र सरकार को 19 मई तक जवाबी हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया था। 20 मई 2025 को हुई सुनवाई में याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ वकील कपिल ने दलील दी कि यह नया कानून वक्फ संपत्तियों को “हड़पने” का प्रयास है। उन्होंने आपत्ति जताई कि सरकार के साथ विवाद में सरकार ही अंतिम फैसला लेगी, जो अन्यायपूर्ण है। सिब्बल ने यह भी तर्क दिया कि मस्जिदों में मंदिरों की तरह चढ़ावा नहीं चढ़ता, बल्कि वक्फ संपत्तियों से प्राप्त आय से ही मस्जिदों का प्रबंधन किया जाता है।
कपिल सिब्बल की दलील पर मुख्य न्यायाधीश भूषण रामकृष्ण गवई ने टोकते हुए कहा, “मैं दरगाह गया हूं, वहां चढ़ावा चढ़ता है।” इस पर सिब्बल ने जवाब दिया कि दरगाह में चढ़ावा चढ़ता है, लेकिन दरगाह और मस्जिद अलग-अलग हैं। उन्होंने वक्फ संपत्तियों के अनिवार्य पंजीकरण पर आपत्ति जताई और कहा कि 100-200 साल पुरानी वक्फ संपत्तियों के दस्तावेज कहां से लाए जाएंगे। इस पर सीजेआई गवई ने उनसे सवाल किया कि क्या पहले के वक्फ कानून में पंजीकरण का प्रावधान नहीं था।
कपिल सिब्बल ने मुख्य न्यायाधीश भूषण रामकृष्ण गवई को बताया कि वक्फ कानून में पहले भी पंजीकरण का प्रावधान था, लेकिन इसका परिणाम यह नहीं था कि गैर-पंजीकृत संपत्ति को वक्फ नहीं माना जाएगा। उन्होंने स्पष्ट किया कि पहले की व्यवस्था में अधिक से अधिक यह था कि पंजीकरण न कराने वाले मुतवल्ली को हटाया जा सकता था, लेकिन नए कानून में गैर-पंजीकृत संपत्ति को ही वक्फ नहीं माना जाएगा। CJI गवई ने उनकी इस आपत्ति को नोट किया।
कपिल सिब्बल ने वक्फ-बाय-यूजर के पंजीकरण को लेकर भी आपत्ति जताई और कहा कि ऐसी संपत्तियों के लिए दस्तावेज जमा करना मुश्किल है, क्योंकि जिसने संपत्ति वक्फ की, उसका उपयोगकर्ता (यूजर) कागजात उपलब्ध नहीं करा पाएगा। उनकी इस दलील पर मुख्य न्यायाधीश भूषण रामकृष्ण गवई ने कहा कि 1954 के बाद से वक्फ संपत्तियों का पंजीकरण अनिवार्य कर दिया गया था।
कपिल सिब्बल ने बताया कि 1904 और 1958 के पुरातात्विक स्मारक अधिनियमों में प्रावधान है कि अगर वक्फ संपत्ति प्राचीन है, तो सरकार ने उसका संरक्षण किया जाता है। इसमें मालिकाना हक का हस्तांतरण नहीं होता और धार्मिक गतिविधियां भी प्रभावित नहीं होतीं।
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