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चीन ने कर्ज के जाल में 75 गरीब देशों को फंसाया, 2025 में चुकाने होंगे 25 अरब डॉलर  – Utkal Mail

नई दिल्ली। चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) के तहत लिए गए ऋणों के कारण 75 सबसे गरीब देशों को वर्ष 2025 में रिकॉर्ड 25 अरब डॉलर का कर्ज चुकाना पड़ेगा, जिनमें पाकिस्तान जैसे देश भी शामिल हैं जिन्हें अकेले 22 अरब डॉलर चुकाने हैं। ऑस्ट्रेलिया के लोवी इंस्टीट्यूट की ओर से जारी अध्ययन के मुताबिक, इन ऋणों की भारी भरपाई विकासशील देशों की स्वास्थ्य, शिक्षा और जलवायु वित्तपोषण क्षमताओं को कमजोर कर रही है।

 रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि कर्ज चुकाने का यह दबाव इन देशों को गंभीर आर्थिक और सामाजिक संकट की ओर धकेल सकता है। अध्ययन में बताया गया है कि चीन ने वर्ष 2008 से 2021 तक बेलआउट सहायता के रूप में 240 अरब डॉलर खर्च किए, लेकिन अब, और इस दशक के बाकी वर्षों में चीन विकासशील देशों के लिए बैंकर नहीं बल्कि ऋण वसूलीकर्ता बन गया है। 
रिपोर्ट के अनुसार, “चीन ने ऐसे समय में ऋण देना बंद कर दिया जब देशों को उसकी सबसे अधिक जरूरत थी। इसके बजाय जब देश पहले से ही आर्थिक दबाव में थे तब बड़े पैमाने पर वित्तीय बहिर्वाह शुरू हुआ।” रिपोर्ट के अनुसार, चीन अपनी देनदारियों का इस्तेमाल राजनीतिक लाभ के लिए भी कर सकता है, विशेषकर ऐसे समय में जब अमेरिका और अन्य पश्चिमी देश विदेशी सहायता में कटौती कर रहे हैं। रिपोर्ट में उन देशों का भी जिक्र किया गया है, जिन्हें ताइवान से बीजिंग की ओर राजनयिक मान्यता बदलने के तुरंत बाद बड़े ऋण दिए गए, जिनमें होंडुरास, निकारागुआ, सोलोमन द्वीप, बुर्किना फासो और डोमिनिकन गणराज्य शामिल हैं।

 रिपोर्ट में कहा गया है कि लाओस, पाकिस्तान, मंगोलिया और कजाकिस्तान जैसे देश खासकर ऊर्जा और बुनियादी ढांचे में भारी चीनी निवेश के कारण गंभीर ऋण संकट में फंसे हैं। इन देशों को अब अपने मूलभूत सार्वजनिक खर्चों को बनाए रखने और चीन को कर्ज चुकाने के बीच संतुलन साधना पड़ रहा है। यह एकतरफा स्थिति नहीं है। चीन खुद भी दबाव में है क्योंकि उसे वैश्विक कूटनीतिक आलोचना, कर्ज पुनर्गठन की मांगों और अपनी धीमी घरेलू अर्थव्यवस्था से जूझना पड़ रहा है। लोवी इंस्टीट्यूट के अनुसार, चीन के ऋण का वास्तविक स्तर शायद रिपोर्ट में बताए गए स्तर से कहीं अधिक है। वर्ष 2021 में एड डेटा ने अनुमान लगाया था कि विकासशील देशों पर लगभग 385 अरब डॉलर का ‘छुपा हुआ कर्ज’ चीन का बकाया है। 

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