मुरादाबाद : सावन की शिवरात्रि पर बन रहा गजकेसरी राजयोग, 100 साल बाद बन रहा दुर्लभ योग – Utkal Mail

मुरादाबाद, अमृत विचार। इस वर्ष उदया तिथि के चलते सावन महीने की शिवरात्रि (शिवतेरस) का व्रत 23 जुलाई को पड़ेगा। इस दिन विशेष गजकेसरी राजयोग बन रहा है जो कुछ राशियों के लिए भाग्य के दरवाजे खोलेगा।
ज्योतिषाचार्य पंडित केदार मुरारी ने बताया कि उदया तिथि के अनुसार बुधवार को शिवरात्रि का व्रत रखा जाएगा। जबकि व्रत का पारण 24 जुलाई की सुबह होगा। सावन शिवरात्रि पर सुबह 8 बजकर 31 मिनट से लेकर सुबह 10 बजकर 01 मिनट तक अमृत काल रहने वाला है। सावन की शिवरात्रि का पर्व इस बार बेहद खास संयोग लेकर आ रहा है। वैदिक ज्योतिष के अनुसार, जब कोई बड़ा व्रत या पर्व आता है, तो ग्रहों की चाल भी विशेष योगों का निर्माण करती है, जिसका सीधा असर व्यक्ति के जीवन, भाग्य और आर्थिक स्थिति पर पड़ता है। इस वर्ष 23 जुलाई को शिवरात्रि पर शुभ संयोग बन रहा है, जिसे गजकेसरी राजयोग कहा जाता है।
ज्योतिषाचार्य ने बताया कि यह दुर्लभ योग करीब 100 साल बाद सावन शिवरात्रि के दिन बन रहा है, जो कुछ राशियों के लिए भाग्य के दरवाज़े खोल सकता है। इस दिन न केवल आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार होगा, बल्कि कुछ जातकों को अचानक धन लाभ और मान-सम्मान प्राप्त होने के प्रबल योग बनेंगे।
वैदिक ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक, सावन शिवरात्रि के दिन सुख-संपदा के कारक शुक्र अपनी मूल त्रिकोण राशि वृषभ राशि में विराजमान रहेंगे, जिससे मालव्य राजयोग का निर्माण हो रहा है। इसके साथ ही चंद्रमा मिथुन राशि में गुरु के साथ युति करेंगे, जिससे गजकेसरी राजयोग का निर्माण होगा और सूर्य और अरुण एक-दूसरे से 120 डिग्री पर होंगे, जिससे नवपंचम राजयोग का निर्माण हो रहा है। सूर्य और बुध की कर्क राशि में युति से बुधादित्य योग का भी निर्माण हो रहा है और सर्वार्थ सिद्धि योग भी बन रहा है। ऐसे में कुछ राशि के जातकों के ऊपर भगवान शिव के साथ-साथ मां लक्ष्मी की विशेष कृपा हो सकती है।
इस दिन शिव-शक्ति का मिलन
सावन की शिवरात्रि को शिव और शक्ति के मिलन का प्रतीक माना जाता है। यह दिन आध्यात्मिक ऊर्जा का केंद्र है, और भक्त इस दिन भगवान शिव की पूजा करके आध्यात्मिक लाभ प्राप्त करते हैं।
मनोकामनाओं की पूर्ति करते हैं महादेव
भक्त सावन शिवरात्रि पर व्रत रखकर, पूजा करके, और रात्रि जागरण करके भगवान शिव से अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए प्रार्थना करते हैं। कहते हैं इसी दिन समुद्र मंथन के समय निकला विष महादेव ने ग्रहण किया था तभी से जलाभिषेक की प्रथा शुरू हुई महादेव नीलकंठ कहलाए।