जानिए क्या होता है 'दिशोम गुरु' का सही मतलब, लोगों ने क्यों दी शिबू सोरेन यह उपाधि? – Utkal Mail

नई दिल्ली। झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के संस्थापक और पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन का दिल्ली के गंगाराम अस्पताल में इलाज के दौरान सोमवार सुबह निधन हो गया। वो 81 साल के थे। हेमंत सोरेन ने सोशल मीडिया के जरिए उनके निधन की जानकारी दी। बता दें कि शिबू सोरेन को किडनी संबंधित बीमारी थी साथ ही अन्य स्वास्थ्य समस्याओं से वो जूझ रहे थे।
शिबू सोरेन के निधन से पूरे झारखंड में शोक की लहर दौड़ गई है। शिबू सोरेन को आदिवासी समुदाय में ‘दिशोम गुरु’ या ‘गुरुजी’ के नाम से जाना जाता है। आइये जानते हैं कि उन्हें ये उपाधि क्यों मिली और इसका मतलब क्या होता है?।
क्या है दिशोम गुरु का मतलब
झारखंड की राजनीति और आदिवासी समुदाय के लिए शिबू सोरेन एक प्रेरणास्रोत रहे हैं। ‘दिशोम गुरु’ एक संथाली शब्द है, जो आदिवासी समुदाय की भाषा से लिया गया है। संथाली में ‘दिशोम’ का अर्थ होता है ‘देश या समुदाय’ और ‘गुरु’ का अर्थ है ‘मार्गदर्शक’। इस तरह ‘दिशोम गुरु’ का मतलब है ‘देश का मार्गदर्शक’ या ‘समुदाय का नेता’। यह उपाधि उस व्यक्ति को दी जाती है जो समाज को दिशा दे, उनके हितों की रक्षा करे और उनके लिए संघर्ष करे। शिबू सोरेन को यह उपाधि उनके आदिवासी समुदाय के प्रति समर्पण और नेतृत्व के सम्मान में दी गई थी।
कैसे बने आदिवासी समुदाय के नायक
1972 में शिबू सोरेन ने झारखंड मुक्ति मोर्चा की स्थापना की, जिसका उद्देश्य आदिवासियों के हक, जमीन और पहचान की रक्षा करना था। उन्होंने झारखंड मुक्ति मोर्चा के जरिए आदिवासियों के अधिकारों के लिए संघर्ष किया था। शिबू सोरने झारखंड आंदोलन के प्रमुख नेता थे जिन्होंने अलग राज्य की मांग की थी। ये आंदोलन 2000 में सफल हुआ। उनके इस संघर्ष ने उन्हें आदिवासी समुदाय का नायक बना दिया। उनके नेतृत्व में सामूहिक खेती और सामुदायिक पाठशालाओं को बढ़ावा दिया गया, जिससे आदिवासियों को आर्थिक और सामाजिक रूप से सशक्त बनाने में मदद मिली।
राजनीतिक योगदान और विरासत
शिबू सोरेन तीन बार झारखंड के मुख्यमंत्री रहे, आठ बार लोकसभा सांसद और तीन बार राज्यसभा सदस्य चुने गए। उन्होंने केंद में कोयला मंत्री के रूप में भी सेवाएं दीं।