धर्म

पृथ्वी पर जीवन के देवता है पशुपतिनाथ…. मंदिर जहां सावन में लगता है श्रद्धालुओं का रेला  – Utkal Mail


यशोदा श्रीवास्तव, कानपुर, अमृत विचारः काठमांडू (नेपाल) स्थिति पशुपतिनाथ मंदिर दुनिया भर के हिंदू धर्मावलंबियों का प्रमुख तीर्थ स्थल है। मान्यता है कि भगवान शंकर के देह स्थल केदारनाथ और मुख स्थल पशुपतिनाथ के दर्शन के बाद ही बारहों ज्योतिर्लिंग के दर्शन का पुण्य प्राप्त होता है। पशुपतिनाथ मंदिर को नेपाल के आर्थिक विकास का बड़ा स्रोत भी माना जाना चाहिए। शिवालय आम तौर पर सावन और शिवरात्रि में खास होते हैं लेकिन यहां का दृश्य हर रोज खास होता है। बारहों मास श्रद्धालुओं की भीड़ का रेला रहता है।

पशुपतिनाथ मंदिर के प्रकटीकरण का कोई इतिहास नहीं फिर भी इसका महत्व सर्व व्यापी है। इस मंदिर के प्रकटीकरण का कोई इतिहास नहीं है फिर भी इसका महत्व सर्वव्यापी, सर्वविदित है। मान्यता है कि यहां आदि काल से ही शिव की मौजूदगी है। पशुपतिनाथ को शिव के12 ज्योतिर्लिंगों में से एक, केदारनाथ का आधा भाग माना जाता है। यह मंदिर नेपाल की राजधानी काठमांडू से तीन किलोमीटर उत्तर-पश्चिम देवपाटन गांव में बागमती नदी के समीप स्थित है। इस नदी को मोक्षदायिनी कहा जाता है। मंदिर के पश्चिम और दक्षिण छोर पर हिंदू लोगों के शवों का अंतिम संस्कार होता है। यहां चिंताओं का जलना अनवरत जारी रहता है।

यह मंदिर हिन्दू धर्म के आठ सबसे पवित्र स्थलों में से एक है। पौराणिक कथा के अनुसार भगवान शिव यहां पर चिंकारे का भेष धारण कर निद्रा में बैठे थे। बहुत ढूंढने के बाद वे देवताओं को मिले। देवताओं ने उन्हें  वाराणसी ले जाने का बहुत प्रयास किया। इस दौरान बागमती नदी के दूसरे किनारे तक भागते हुए उनका सींग चार टुकडों में टूट गया। फिर भगवान पशुपति चतुर्मुख लिंग के रूप में यहां प्रकट हुए थे।

पशुपतिनाथ लिंग विग्रह में चार दिशाओं में चार मुख और ऊपरी भाग में पांचवां मुख है। प्रत्येक मुखाकार के दाएं हाथ में रुद्राक्ष की माला और बाएं हाथ में कमंडल है। प्रत्येक मुख अलग-अलग महत्व के हैं और इन्हीं पांच मुखाकृतियों के पूजा का अलग-अलग महत्व है।  पहला मुख ‘अघोर’ मुख है, जो दक्षिण की ओर है। पूर्व मुख को ‘तत्पुरुष’ कहते हैं। उत्तर मुख ‘अर्धनारीश्वर’ का रूप है। पश्चिमी मुख को ‘सद्योजात’ कहा जाता है। ऊपरी भाग ‘ईशान’ मुख के नाम से जाना जाता है। यह निराकार मुख है। यही भगवान पशुपतिनाथ का श्रेष्ठतम मुख माना जाता है।

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नेपाल के राजाओं ने 1747 से ही पशुपतिनाथ मंदिर में भगवान की सेवा के लिए  भारतीय ब्राह्मणों को आमंत्रित किया था। सर्वप्रथम  दक्षिण भारतीय ब्राह्मण को ‘पशुपतिनाथ मंदिर’ का प्रधान पुरोहित नियुक्त किया था। दक्षिण भारतीय भट्ट ब्राह्मण ही इस मंदिर के प्रधान पुजारी नियुक्त होते रहे हैं, और इन्हें ही पशुपतिनाथ मंदिर के शिवलिंग को स्पर्श करने का अधिकार है। 2009 में माओवादियों ने पशुपतिनाथ मंदिर में घुस कर भारतीय पुजारियों का विरोध करते हुए इनके दुर्व्यवहार किया था। यह मामला दोनों देशों के बीच तनाव का कारण बना था लेकिन नेपाल की तत्कालीन सरकार ने सूझबूझ से इसे संभाल लिया था। मंदिर में भारतीय भट्ट पुजारियों के नियुक्ति की परंपरा आज भी कायम है। 

सावन के प्रथम सोमवार को दर्शन करने जुटते हैं लाखों श्रद्धालु 

पशुपतिनाथ मंदिर में यूं तो सावन भर श्रद्धालुओं का रेला रहता है लेकिन इस माह के सावन के प्रथम सोमवार को लाखों श्रद्धालु का तांता लग जाता है। इस बार के सावन में अबतक करीब 15 लाख श्रद्धालुओं के दर्शन की सूचना है इनमें सर्वाधिक संख्या भारतीयों की ही है। भारत के कोने-कोने से लोग यहां आते हैं और पशुपतिनाथ का जलाभिषेक करते हैं। श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए यहां की व्यवस्था में काफी कुछ बदलाव हुआ है। दर्शनार्थियों को जरा भी दिक्कत न हो, इसका पूरा ख्याल रखा गया है।  पहले की तरह बेधड़क जाकर भोलेनाथ के इस रूप का दर्शन नहीं कर सकते। मंदिर में दर्शन का समय तथा पूजा-पाठ के तौर तरीके सब बदले हुए हैं। पूजा अर्चना के विधि विधान और पूजा सामग्री के चढ़ावे में आपको मंदिर के नियम का पालन करना होगा। सब कुछ समय और चरणबद्ध हो गया है।

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रुद्राभिषेक का है खास महत्व 

पशुपतिनाथ मंदिर में रुद्राभिषेक का खास महत्व है। यहां आने वाला हर कोई रुद्राभिषेक जरूर कराना चाहेगा। पहले  रुद्राभिषेक या और कोई पूजा कराने के लिए पुजारियों की दक्षिणा स्वेच्छिक थी। अब नहीं। मंदिर प्रशासन ने वाकायदे अपना रेट तय कर दिया है और इसे बड़े से बोर्ड पर चस्पा कर दिया है। विशेष पूजा के लिए अलग से एक प्रकोष्ठ कायम कर दिया गया है जिनके माध्यम से ही आप मनचाहा पूजा करा पाएंगे। पूजा की फीस यहां जमा कर आप को रसीद थमा दी जाएगी। यहां चढ़ावे अथवा पूजा शुल्क का नेपाल के आर्थिक विकास में बड़ा योगदान है। चढ़ावे का बड़ा हिस्सा मंदिर के रखरखाव, कर्मचारियों के वेतन आदि में भी खर्च होता है। यहां पूजा की यह राशि श्रद्धालु खुशी खुशी अदा करते हैं।

पशुपतिनाथ मंदिर में कोई वीआईपी दर्शनार्थी नहीं होता। नेपाल का बड़ा से बड़ा आदमी या राजनेता भी आ जाय तो भी आम श्रद्धालुओं के दर्शन में कोई व्यवधान नहीं होता। सब एक साथ पूजा अथवा दर्शन करते रहते हैं। राष्ट्रपति से बड़ा कौन राजनेता होगा लेकिन उनके आगमन पर भी सबकुछ सामान्य रहता है।

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