विचार

अब हिन्दी राष्ट्रभाषा से संयुक्तराष्ट्रभाषा और विश्वभाषा बननेवाली है-आचार्य डा.महेश शर्मा

भिलाई। राष्ट्रभाषा अलंकरण आदि अनेक पुरस्कारों और सम्मानों से सम्मानों से सम्मानित आचार्य डा.महेशचन्द्र शर्मा हिन्दी साहित्य एवं भाषाविज्ञान आदि अनेक विषयों में एमए हैं। दस पुस्तकों और सैकड़ों लेख,आलेख और शोधालेख हिन्दी में ही प्रकाशित हैं। देश-विदेश की अनेक सफल शैक्षणिक और साहित्यिक यात्रा वे कर चुके हैं। उनकी प्रसिद्ध पुस्तक ” ‘सिद्धार्थचरित का सांस्कृतिक अध्ययन’  पर परमपावन दलाईलामा ने हस्ताक्षरयुक्त शुमकामनायें दी हैं।
डा.शर्मा ने हिन्दी को विश्व लोकप्रिय भाषा बताते हुए कहा कि इसके महाकवि गोस्वामी तुलसीदास पर दुनियाभर के 456 विद्वानों ने शोधकार्य किये हैं। 1911 में इटली के एल.पी.तेस्सितोरी ने और 1918 में लंदन के जे.एन.कारपेंटर ने उन पर शोध किया। भारत में 1938 में डा. बलदेव प्रसाद मिश्र ने नागपुर विश्वविद्यालय से उनपर शोधकार्य किया।
डा.महेश ने कहा कि मैं इन विद्वानों की चरणरज भी नहीं, तथापि तुलसीदासजी का छोटा-सा पाठक हूँ। साथ ही भारत शासन  के तकनीकी शब्दावली आयोग, मूलभूत प्रशासनिक शब्दावली समीक्षा समिति के विशेषज्ञ के रूप में हिन्दीसेवा के अवसर मुझे सुलभ हुये। ‘हिन्दी व्युत्पत्ति कोष’ निर्माण में भी सहयोग का अवसर मुझे मिला। इधर बख्शी सृजन पीठ की अ.भा.शब्दावली कार्यशाला में भी उनकी सक्रिय भागीदारी रही। डा.शर्मा ने बताया कि वैज्ञानिक और तकनीकी शब्दावली आयोग ने  1960 में अपने गठन  से 10  सितंबर  2018 तक साढ़े आठ लाख से अधिक हिन्दी के नये और सरल शब्द गढ़े।
डा. महेशचन्द्र शर्मा को लन्दन में भी हिन्दी का आशीर्वाद मिला। 05-08 अक्टूबर  1997  मे ‘जगन्नाथ संस्कृति’ पर केन्द्रित अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्ठी में ” ‘जगन्नाथ एवं भारती राष्ट्रीय एकता’ शीर्षक शोधालेख प्रस्तुत किया। लन्दन के भारत विद्या प्रेमी मि.डेरेक मूर कार्यक्रम के मुख्य अतिथि थे। उनके साथ सभी उपस्थितों ने डा.शर्मा के शोधालेख की सराहना की। डा. शर्मा ने भारतीय प्रतिनिधि मण्डल के साथ लन्दन स्थित ‘भारती विद्याभवन’ के यू. के. केन्द्र का भी शैक्षणिक और सांस्कृतिक भ्रमण किया। उसका रजत जयंती वर्ष समारोह भी था।
आज वैश्विक स्थिति और परिस्थितियाँ हिन्दी और हमारे अनुकूल हैं। 2018 के 11वें विश्व हिन्दी सम्मेलन के बाद संयुक्त राष्ट्र संघ की आधिकारिक भाषा हिन्दी हेतु प्रगति सूचक कोशिशें पूरी की जारही हैं।  यहाँ से जारी साप्ताहिक हिन्दी बुलेटिन शीघ्रातिशीघ्र दैनिक होनेवाला है। हिन्दी में ट्विटर अकाउंट खोला जा चुका है। विश्व के अनेक विमान पत्तनों पर ” नमस्ते” और ‘क्या हाल-चाल है?’ आराम से और खूब सुना जा सकता है। भारत की सुदृढ़ आर्थिक स्थिति भी हिन्दी को मज़बूत और लोकप्रिय कर रही है। पर्यटन उद्योग भी सहायक है। बहु राष्ट्रीय कम्पनियों ने मारकेटिं और कस्टमर केयर में सामान्य हिन्दी अनिवार्य करदी है। हिन्दी फ़िल्मों की लोकप्रियता भी सहायक है। हमारे रेस्तरां में 75% विदेशी मूल के लोगों ने नान रोटी और मसाला-डोसा को अन्तर्राष्ट्रीय व्यंजन घोषित कर दिया है। कुल मिलाकर ज्ञान- विज्ञान और विज्ञापन आदि से समृद्ध हिन्दी भाषा अब वैश्विक भाषा के रूप मे है। तो आईये अबआप-हम केवल एक दिन ‘हिन्दी दिवस’ नहीं अपितु हर दिन ‘राष्ट्रभाषा – विश्वभाषा हिन्दी’ का पर्व मनायें और उस पर गर्व करें। जय भारत

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