हल्द्वानी: लोकपर्व हरेले की धूम, पकवानों की सुगंध से महका कुमाऊं – Utkal Mail

हल्द्वानी, अमृत विचार। लोकपर्व हरेला आज धूमधाम से मनाया जा रहा है। इस दौरान बच्चों के सिर पर हरेला रखकर उन्हें आशीष दिया गया। सामाजिक रूप से विशेष महत्त्व रखने वाला हरेला पर्व की पूर्व संध्या पर घरों में डिकारों (शिव परिवार) का पूजन कर हरेले की गुड़ाई की गई।
परंपरा के अनुसार पर्व से एक दिन पहले मिट्टी से बनी गणेश, शिव, पार्वती (डिकारे) हरेले के पास रखे जाते हैं। जिले भर में सोमवार शाम हरेले की गुड़ाई कर डिकारों की पूजा की गई। मंगलवार को परिवार के मुखिया या बुजुर्ग हरेला काटकर मंदिरों में चढ़ायरा गया। इसके बाद हरेले को शिरोधार्य किया गया। हरेले के मौके पर फल, सब्जियों के पौधे, बीज बोए गए, इस दिन बुवाई करने से अच्छी फसल प्राप्त होती है।
आपको बता दें कि उत्तराखंड में बड़े ही धूमधाम के साथ हरेला पर्व मनाया जाता है। लोकपर्व हरेला सावन के आगमन का संदेश है। हरेला देवभूमि उत्तराखंड का लोकपर्व है, जोकि प्रकृति से जुड़ा है। खासतौर पर हरेला पर्व उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में मनाया जाता है।
तैयारियों में लोग 9 दिन पहले से ही जुट जाते हैं। 9 दिन पहले घर पर मिट्टी या फिर बांस से बनी टोकरियों में हरेला बोया जाता है। हरेला के लिए सात तरह के अनाज, गेहूं, जौ, उड़द, सरसो, मक्का, भट्ट, मसूर, गहत आदि बोए जाते हैं. हरेला बोने के लिए साफ मिट्टी का प्रयोग किया जाता है। हरेला बोने के बाद लोग 9 दिनों तक इसकी देखभाल भी करते हैं और दसवें दिन इसे काटकर अच्छी फसल की कामना की जाती है और इसे देवताओं को समर्पित किया जाता है। हरेला की बालियां से अच्छे फसल के संकेत मिलते हैं।
ऐसी मान्यता है कि हरेला जितना बड़ा होगा उतना ही किसानों को अपनी फसल से लाभ होगा। इस पर्व को शिव और पार्वती के विवाह के रूप में भी मनाया जाता है। इस दिन शिव पार्वती की पूजा की जाती है और अच्छी फसल के लिए भगवान से प्रार्थना की जाती है। ऐसा माना जाता है कि जितनी ज्यादा बालियां, उतनी अच्छी फसल होती है।