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राहुल गांधी ने 'हिंदू धर्म' पर लिखा लेख…सोशल मीडिया पर किया साझा, क्या आपने पढ़ा? – Utkal Mail


नई दिल्ली। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने भय, धर्म तथा अन्य पिछड़े वर्ग (ओबीसी) की राजनीतिक चर्चा के बीच सत्यम, शिवम, सुंदरम नाम से एक लेख रविवार को सोशल मीडिया पर साझा किया जिसमें पूर्वाग्रह तथा भय से मुक्त होकर सत्य एवं अहिंसा के मार्ग पर चलकर सबको आत्मसात करना ही हिन्दू होने का एकमात्र रास्ता बताया गया है।

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गांधी ने हिन्दू होने का मतलब दार्शनिक अंदाज़ में समझाते हुए कहा, “एक हिंदू अपने अस्तित्व में समस्त चराचर को करुणा और गरिमा के साथ उदारतापूर्वक आत्मसात करता है, क्योंकि वह जानता है कि जीवन रुपी इस महासागर में हम सब डूब-उतर रहे हैं।” 

भय का जिक्र करते हुए उन्होंने लिखा “जिस व्यक्ति में अपने भय की तह में जाकर इस महासागर को सत्यनिष्ठा से देखने का साहस है- वहीं हिंदू है। एक हिंदू में अपने भय को गहनता में देखने और उसे स्वीकार करने का साहस होता है। जीवन की यात्रा में वह भय रुपी शत्रु को मित्र में बदलना सीखता है। भय उस पर कभी हावी नहीं हो पाता, वरन घनिष्ठ सखा बनकर उसे आगे की राह दिखाता है। एक हिंदू की आत्मा इतनी कमज़ोर नहीं होती कि वह अपने भय के वश में आकर किसी क़िस्म के क्रोध,घृणा या प्रतिहिंसा का माध्यम बन जाए।” 

गांधी ने जीवन के अर्थ को परिभाषित करते हुए अपने लेख में लिखा, “कल्पना कीजिए, जिंदगी प्रेम और उल्लास का, भूख और भय का एक महासागर है और हम सब उसमें तैर रहे हैं।इसकी खूबसूरत और भयावह, शक्तिशाली और सतत परिवर्तनशील लहरों के बीचोंबीच हम जीने का प्रयत्न करते हैं। इस महासागर में जहां प्रेम, उल्लास और अथाह आनंद है- वहीं भय भी है। मृत्यु का भय, भूख का भय, दुखों का भय, लाभ-हानि का भय, भीड़ में खो जाने और असफल रह जाने का भय।

इस महासागर में सामूहिक और निरंतर यात्रा का नाम जीवन है जिसकी भयावह गहराइयों में हम सब तैरते हैं। इसलिए, क्योंकि इस महासागर से आज तक न तो कोई बच पाया है, न ही बच पाएगा।” कमजोर वर्ग यानी ओबीसी की राजनीति को साधते हुए उन्होंने कहा “हिन्दू धर्म कमजोरों की मदद कर और सबको आत्मसात करता है। एक हिंदू अपने अस्तित्व में समस्त चराचर को करुणा और गरिमा के साथ उदारतापूर्वक आत्मसात करता है। 

क्योंकि वह जानता है कि जीवन रुपी इस महासागर में हम सब डूब-उतर रहे हैं. अस्तित्व के लिए संघर्षरत सभी प्राणियों की रक्षा वह आगे बढ़कर करता है। सबसे निर्बल चिंताओं और बेआवाज चीखों के प्रति भी वह सचेत रहता है।निर्बल की रक्षा का कर्तव्य ही उसका धर्म है।

सत्य और अहिंसा की शक्ति से संसार की सबसे असहाय पुकारों को सुनना और उनका समाधान ढूंढना ही उसका धर्म है।एक हिंदू में अपने भय को गहनता में देखने और उसे स्वीकार करने का साहस होता है।जीवन की यात्रा में वह भय रुपी शत्रु को मित्र में बदलना सीखता है।भय उस पर कभी हावी नहीं हो पाता, वरन घनिष्ठ सखा बनकर उसे आगे की राह दिखाता है। 

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