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दिल्ली की जहरीली हवा-मिट्टी और पानी में कैसे तैरने लगे प्लास्टिक के कण! रिसर्च के नतीजों ने बढ़ाई चिंता  – Utkal Mail


अमृत विचार : दिल्ली की हवा-पानी और मिट्टी को जहरीला बना चुका प्रदूषण एक खतरनाक स्टेज तक पहुंच गया है। एक रिसर्च में दिल्ली-एनसीआर की हवा-पानी में माइक्रो-प्लास्टिक के अदृश्य कण पाए गए हैं। खाने-पीने और सांसों के जरिये प्लास्टिक के ये सूक्ष्म कण दिल्लीवासियों के शरीर में पहुंच रहे हैं, जो स्वास्थ्य पर काफी घातक असर डाल रहे हैं। 

 
द एनर्जी एंड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट (TERI) ने नीति आयोग और जर्मनी की जीआईजेड संस्था के साथ मिलकर दिल्ली-एनसीआर में एक रिसर्च की। रिसर्चस ने 12 शहरों में हवा, पानी और मिट्टी के नमूने लेकर उनका परीक्षण किया। 

रिपोर्ट में दिल्ली के नीतेजों ने शोधकर्ताओं को चौंका दिया। दिल्ली की हवा में माइक्रो-प्लास्टिक फाइबर की मात्रा 1.6 से 4.2 पाई गई। राजधानी की जलदायिनी यमुना और दूसरी नदियों में प्लास्टिक की सांद्रता भी विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मानकों से छह गुना ज्यादा मिली है। 

हवा-पानी मिट्टी में कहां से आती माइक्रो-प्लास्टिक 

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-दिल्ली-एनसीआर की हवा-मिट्टी पानी में माइक्रो-प्लास्टिक की मौजूदगी ने पर्यावरण और स्वास्थ्य विभाग को चिंतित कर दिया। टेरी रिपोर्ट के मुताबिक सिंथेटिक कपड़ों के रेशे, इमारतें, पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर के निर्माण, प्लास्टिक कचरा और वाहनों के टायरों के घर्षण से हवा-पानी और मिट्टी में माइक्रो-प्लास्टिक के सक्ष्म कण पहुंच रहे हैं। यह इंसानों के स्वास्थ्य के साथ कृषि उत्पादकता के लिए भी घातक हैं। 

टेरी के वैज्ञानिक डॉ. शशि वर्मा के हवाले से रिपोर्ट में कहा गया है कि माइक्रो-प्लास्टिक्स अब समंदर के जीवों तक सीमित नहीं हैं। ये इंसानों के शरीर में भोजन, फेफड़े और मस्तिष्क तक पहुंच रहे हैं। 

टेरी की रिपोर्ट कहती है कि यमुना और दूसरी नदियों के जल में प्रति लीटर औसतन 8.5 से लेकर 12 माइक्रो-प्लास्टिक्स कण पाए गए हैं। जबकि डब्ल्यूएचओ ने प्रति लीटर पानी में 2-3 कण की मात्रा निर्धारित की है, जो दिल्ली में मानकों से चार गुना ज्यादा है। 

टेरी ने अपनी रिपोर्ट में प्रदूषण के इस खतरनाक स्तर से बचाव के सुझाव भी दिए हैं। इसके लिए राष्ट्रीय माइक्रो-प्लास्टिक निगरानी नेटवर्क स्थापनित किया जाए। सिंथेटिक कपड़ों पर टैक्स और पर्यावरण प्राणली आदि के सुझाव शामिल हैं। 

रिपोर्ट में कहा गया है कि हवा, पानी और मिट्टी में माइक्रो-प्लास्टिक की बढ़ती मात्रा काफी गंभीर विषय है। इस पर फौरन ध्यान देने की जरूरत है। कचरा प्रबंधन की व्यवस्था सख्त की जाए। स्कूल-कॉलेज में जागरुकता अभियान चलाए जाएं। माइक्रो-प्लास्टिक को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया जाए। इसके अलावा प्लास्टिक निगरानी अभियान भी चलाने की जरूरत पर जोर दिया गया है। 

प्रदूषण से कैसे आजाद होगी दिल्ली 

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-दिल्ली जो पहले से प्रदूषण से जकड़ी है। सर्दियों में प्रदूषण पर शोर मचता है। तब, जब यहां सांसें लेना दूभर हो जाता। हवा जहरीली हो जाती। लेकिन अब इसी संकट के बीच हवा में प्लास्टिक के सूक्ष्म कण, जो सांसों के जरिये शरीर में प्रवेश कर रहे हैं। वो दिल्लीवासियों की सेहत की मुश्किलें और बढ़ाएंगे। जाने-अनजाने और चाहे-अनचाहे आम लोग प्रदूषण के कारण बीमारियों के जंजाल में फंस रहे हैं।

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