धर्म

“सरकार कर रही पाप”: बांके बिहारी मंदिर को लेकर हाईकोर्ट की सख्त टिप्पणी – Utkal Mail

प्रयागराज, अमृत विचार : वृंदावन स्थित प्रसिद्ध श्री बांके बिहारी मंदिर को सरकार द्वारा अधिग्रहित करने के प्रयासों पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बुधवार को तीखी और दो-टूक मौखिक टिप्पणियाँ कीं। न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल की एकलपीठ ने राज्य सरकार के उस अध्यादेश पर नाराजगी जताई, जिसके तहत मंदिर के संचालन हेतु ‘श्री बांके बिहारी जी मंदिर न्यास’ नाम से एक वैधानिक ट्रस्ट गठित किया गया है, जिसमें शीर्ष प्रशासनिक अधिकारियों को पदेन ट्रस्टी बनाया गया है।

“मंदिर का दान भगवान का है, राज्य उसे हड़प नहीं सकता” : न्यायालय ने कहा कि “यह सरकार पाप कर रही है। मंदिर को अकेला छोड़ देना चाहिए।”मंदिर में आने वाला दान भगवान का होता है, राज्य उसका अधिकारी नहीं हो सकता। आईएएस अफसर मंदिरों के धन पर नजर गड़ाए बैठे हैं।

तमिलनाडु की मिसाल देकर किया आगाह : कोर्ट ने टिप्पणी की कि तमिलनाडु में 40,000 से अधिक मंदिर राज्य के नियंत्रण में हैं, जहां सारा पैसा नौकरशाहों के पास जा रहा है। उत्तर प्रदेश में भी वही मॉडल लागू करने की मंशा नजर आती है।

“ट्रस्ट में आचार्य और शंकराचार्य होने चाहिए, नौकरशाह नहीं” : कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि धार्मिक न्यास में प्रशासनिक अफसरों की जगह धर्माचार्यों को शामिल किया जाना चाहिए। “अगर किसी और धर्म में भगवान का पैसा ले लीजिए, तो हंगामा मच जाएगा,” यह कहकर कोर्ट ने धार्मिक भेदभाव की ओर इशारा भी किया। “एक मंदिर ले लिया, तो फिर दूसरा भी ले लेंगे… कर्म लौटकर आता है” कोर्ट ने कहा कि अगर सरकार एक मंदिर का अधिग्रहण कर लेगी, तो अगला और फिर अगला भी लेगी।”कर्म लौटकर आता है।”इससे पहले सुप्रीम कोर्ट भी राज्य सरकार की “अत्यधिक जल्दबाजी” पर सवाल उठा चुका है।

मंदिर का स्वामित्व सेवायतों के पास, विवाद पुराना : श्री बांके बिहारी मंदिर पर स्वामी हरिदास जी के वंशजों द्वारा पीढ़ियों से संचालन किया जाता रहा है। सेवायतों के दो गुटों के बीच मतभेद के चलते यह विवाद बढ़ा है। मार्च 2025 में हाईकोर्ट ने वरिष्ठ अधिवक्ता संजय गोस्वामी को न्यायमित्र (एमिकस क्यूरी) नियुक्त कर मामले में संतुलित रिपोर्ट मांगी थी। इसी बीच राज्य सरकार ने 2025 में अध्यादेश लाकर मंदिर के प्रशासनिक नियंत्रण की कोशिश की, जिसे कोर्ट ने संविधान के धर्मनिरपेक्ष स्वरूप के खिलाफ बताया। कोर्ट की इस तीखी टिप्पणी ने एक बार फिर देश में मंदिरों पर सरकारी नियंत्रण की नीति को बहस के केंद्र में ला दिया है। अब इस प्रकरण में अगली सुनवाई 26 अगस्त 2025 को निर्धारित की गई है।

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