धर्म

बसौड़ा या शीतला अष्टमी कब है शीतला अष्टमी ? जानें मुहूर्त, इस दिन देवी शीतला को क्यों लगाते हैं बासी भोग

शीतला अष्टमी या कहीं शीतला सप्तमी के दिन बसौड़ा मनाया जाता है। इसे कहीं-कहीं बसिऔरा पूजा भी कहते हैं। इस दिन बासी खाना खाया जाता है और बासी खाने का ही भोग लगाया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि इस दिन शीतला माता की पूजा से कई बीमारियों से राहत मिलती है। माता शीतला महामारी से लोगों की रक्षा करती है।

शीतला सप्तमी 2023 मुहूर्त
पंचांग के अनुसार चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की शीतला सप्तमी 13 मार्च 2023 को रात 09 बजकर 27 मिनट से शुरू होगी और इसका समापन 14 मार्च 2023 को रात 08 बजकर 22 मिनट पर होगा.  उदयातिथि के अनुसार शीतला सप्तमी 14 मार्च को है. शीतला माता शीतलता प्रदान करने वाली देवी मानी गई हैं इसलिए सूर्य का तेज बढ़ने से पहले इनकी पूजा उत्तम मानी जाती है.

शीतला माता की पूजा का समय – सुबह 06.31 – शाम 06.29 (14 मार्च 2023)

पूजा की अवधि – 11 घंटे 58 मिनट

शीतला अष्टमी 2023 मुहूर्त

पंचांग के अनुसार चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की शीतला अष्टमी 14 मार्च 2023 को रात 08 बजकर 22 मिनट से शुरू होगी और इसका समापन 15 मार्च 2023 को शाम 06 बजकर 45 मिनट पर होगा. शीतलाष्टमी के एक दिन पूर्व माता शीतला को भोग लगाने के लिए बासी खाना यानी बसोड़ा  तैयार किया जाता है.

शीतला माता की पूजा मुहूर्त – सुबह 06.30 – शाम 06.29

पूजा की अवधि – 12 घंटे

शीतला अष्टमी का महत्व

स्कंद पुराणों के अनुसार  शीतला माता गधे की सवारी करती हैं, उनके हाथों में कलश, झाड़ू, सूप (सूपड़ा) रहते हैं और वे नीम के पत्तों की माला धारण किए रहती हैं. मान्यता है कि शीतला अष्टमी पर महिला माता का व्रत रखती है और उनका श्रद्धापूर्वक पूजन करती हैं, उनके  परिवार और बच्चे निरोगी रहते हैं. देवी शीतला की पूजा से बुखार, खसरा, चेचक, आंखों के रोग आदि समस्याओं का नाश होता है. शीतला अष्टमी के दिन मातारानी को सप्तमी को बने बासे भोजन का भोग लगाकर लोगों को ये संदेश दिया जाता है कि आज के बाद पूरे ग्रीष्म काल में अब ताजे भोजन को ही ग्रहण करना है.

इस साल 14 मार्च को शीतला सप्तमी की पूजा और 15 मार्च को शीतलाष्टमी की पूजा की जाती है। हर जगह इस पूजा का दिन और परंपरा अलग है। इसे होलिका दहन के अगले सप्ताह उसी दिन किया जाता है, उदाहरण के लिए अगर होली मंगलवार की थी , तो अगले सप्ताह मंगलवार के दिन ही शीतला सप्तमी की जाती है। वहीं कई लोग माता के दिन यानी सोमवार और बुध या शुक्रवार को पूजा करते हैं।

बसिऔरा पर्व के दौरान माता शीतला को बासी भोजन का प्रसाद चढ़ाया जाता है। पूरे चैत्र महीने में किसी भी शनिवार या मंगलवार को माता शीतला की पूजा मनुष्य को ग्रह, पीड़ा तथा महामारी से निजात दिलाता है। शीतला माता की पूजा के लिए एक दिन पहले नहाधोकर रात को खाना बना लिया जाता है और अघले दिन व्रत का संकल्प लेकर व्रत शुरू किया जाता है। पास के शीतला माता मंदिर में दर्शन, पूजा के लिए भी जाते हैं। इसके बाद होलिका दहन की जगह भी पूजा कर प्रसाद अर्पित किया जाता है।

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