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कावड़ यात्रा 2024: कंधे पर ही क्यों रखा जाता है कांवड़, शास्त्रों में कांवड़ का महत्व – Utkal Mail

लखनऊ, अमृत विचारः श्रावण मास में भगवान शिव का जलाभिषेक करने के लिए कांवड़ यात्रा निकाली जाती है। कावड़िये अपने कंधों पर गंगाजल से भरा कांवड़ लेकर आते हैं और भगवान शिव का उसी गंगाजल से जलाभिषेक करते हैं। 

कंधे पर ही क्यों रखते हैं कांवड़

कभी सोचा है कि सावन में लोग कांवड़ को आखिर कंधे पर ही क्यो उठाते हैं सर पर क्यों नहीं। आपको बता दें कि ऐसा इस लिए होता है क्यों कि अगर कांवड़ को कांवड़िए सर पर रखेंगे तो वह गंगाजल उनके सर पर टपकेगा, जो की गलत होगा क्योंकि उस गंगाजल से सिर्फ शिव जी का जलाभिषेक किया जाता है। 

यह पर्व अधिकतर उत्तरी राज्यों में मनाया जाता है, लेकिन अब कई लोग इसे दक्षिण क्षेत्र में भी मनाते हैं, क्योंकि इसकी शुरुआती संकल्पना तो रामेश्वर से शुरु हुई थी। कांवड़ यात्री कंधे पर ही गंगाजल से भरकर कांवड़ यात्रा करते हैं।   

आनंद रामायण के सार कांड 10.183 और 186 में कांवड़ का वर्णन किया गया है।

मम तद्वचनं श्रुत्वा प्रसन्नो रघुनायकः
जगाद स्नात्वा सेतुबंधे रामेशं परिपश्यन्ति

संकल्प्प नियतो भूत्वा गृहीत्वा सेतुवालुकाम्
करं डिकाभिर्यत्नेन गत्वा वाराणसीं शुमाम् 

क्षिप्त्वा तां बालुां त्यक्त्या वेण्यां बालुकरंडिकाम् 
आनीय गंगासलिलं रामेशमभिषिच्य च 

समुद्रे त्यक्ततद्भारो ब्रह्म प्राप्नोत्यसंशयम्
संकल्पेन बिना गंगा रामेशं नागमिष्यति

इसका अर्ध है कि हे पार्वती! मेरी बात सुनकर श्री राम प्रसन्न हुए। उन्होंने कहा कि जो कोई सेतुबंध में स्नान करके दृढ़ विश्वास के साथ रामेश्वर शिव के दर्शन करेगा, फिर दृढ़ संकल्प से सेतु की बालुका को कांवड़ में रखकर प्रेम और यत्म के साथ काशी में लेकर गंगा जी में प्रवाह करेगा और उस कांवड़ को उसी जगह छोड़कर दूसरी कांवड़ में गंगाजल लेकर रामेश्वर का जलाभिषेक करेगा, कांवड़ को समुद्र में फेक्कर निःसंदेह ब्रह्मपद को प्राप्त होंगे। रामेश्वर की इस यात्रा में दृढ़ विश्वास का होना महत्वपूर्ण है। जब कर दृढ़ संकल्प न हो कांवड़ यात्रा नहीं करनी चाहिए।

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नोट- उपरोक्त विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं। यह जानकारी मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है। जरूरी नहीं है कि अमृत विचार इससे सहमत हो। 


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