विदेश

अंटार्कटिका की बर्फ में दबी है एक विशाल पर्वत श्रृखंला, आकड़ो में आया सामने  – Utkal Mail

सिडनी। क्या आपने कभी सोचा है कि बर्फ की मोटी चादर के नीचे का अंटार्कटिका कैसा दिखता है? नीचे ऊबड़-खाबड़ पहाड़, घाटियां और मैदान छिपे हुए हैं। ट्रांसअंटार्कटिक पर्वत जैसे विशाल पहाड़ बर्फ की चादर के ऊपर दिखाई देते हैं, जबकि पूर्वी अंटार्कटिका के बीचोंबीच स्थित प्राचीन गम्बुर्त्सेव सबग्लेशियल पर्वत पूरी तरह से बर्फ के नीचे दबे हुए हैं। गम्बुर्त्सेव पर्वत आकार और फैलाव के मामले में यूरोपीय आल्प्स के समान हैं। 

हालांकि, हम उन्हें नहीं देख सकते, क्योंकि ऊंची अल्पाइन चोटियां और गहरी हिमनदी घाटियां बर्फ की कई किलोमीटर मोटी परत के नीचे दबी हुई हैं। गम्बुर्त्सेव पर्वत कैसे अस्तित्व में आया? आम तौर पर कोई पर्वत शृंखला उन जगहों पर उभरती है, जहां दो टेक्टॉनिक प्लेट आपस में टकराती हैं। लेकिन पूर्वी अंटार्कटिका तो लाखों वर्षों से टेक्टॉनिक रूप से स्थिर है। 

‘अर्थ एंड प्लेनेटरी साइंस लेटर्स’ पत्रिका में प्रकाशित हमारे नये अध्ययन से पता चलता है कि बर्फ की मोटी चादर के नीचे दबी यह विशाल पर्वत शृंखला 50 करोड़ साल से भी अधिक समय पहले अस्तित्व में आई थी, जब टेक्टॉनिक प्लेट की टक्कर से वृहत महाद्वीप (सुपरकॉन्टिनेंट) गोंडवाना तैयार हुआ था। हमारे अध्ययन से इस बारे में नयी जानकारी हासिल होती है कि अलग-अलग भूगर्भिक काल में पहाड़ और महाद्वीप कैसे विकसित हुए। इससे यह भी समझने में मदद मिलती है कि अंटार्कटिका का आंतरिक हिस्सा करोड़ों वर्षों से उल्लेखनीय रूप से स्थिर क्यों रहा है। सोवियत दल ने अस्तित्व से उठाया पर्दा-गम्बुर्त्सेव पर्वत शृंखला पूर्वी अंटार्कटिका में बर्फ की चादर के सबसे ऊंचे बिंदु के नीचे दबी हुई है। 

सबसे पहले 1958 में एक सोवियत दल ने भूकंपीय तकनीकों की मदद से इसके अस्तित्व से पर्दा उठाया था। चूंकि, यह पर्वत शृंखला पूरी तरह से बर्फ से ढकी हुई है, इसलिए यह पृथ्वी की उन टेक्टोनिक विशेषताओं में से एक है, जिनके बारे में ज्यादा समझ नहीं हासिल की जा सकी है। वैज्ञानिकों के लिए यह बहुत ही रहस्यमयी प्रवृत्ति की है। एक प्राचीन, स्थिर महाद्वीप के हृदय में इतनी विशाल पर्वत शृंखला आखिर कैसे तैयार हुई और इसका अस्तित्व अभी तक कैसे बरकरार है? ज्यादातर प्रमुख पर्वत शृंखलाएं टेक्टॉनिक टकराव वाली जगहों को चिह्नित करती हैं। 

मिसाल के तौर पर हिमालय अभी भी बढ़ रहा है, क्योंकि भारतीय और यूरेशियन प्लेट लगातार एक-दूसरे की तरफ बढ़ रही हैं। लगभग पांच करोड़ साल पहले शुरू हुई इस प्रक्रिया के कारण हिमालय की ऊंचाई में हर साल कुछ मिलीमीटर की वृद्धि दर्ज की जाती है। प्लेट टेक्टॉनिक मॉडल बताते हैं कि पूर्वी अंटार्कटिका की मौजूदा भूपर्पटी 70 करोड़ साल से भी अधिक समय पहले, कम से कम दो बड़े महाद्वीप के करीब आने से तैयार हुई थी। ये महाद्वीप एक विशाल महासागरीय बेसिन से बंटे हुए थे। 

इन विशाल भूखंडों के टकराव से गोंडवाना का जन्म हुआ, जो एक ऐसा वृहत महाद्वीप था, जिसमें मौजूदा अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, भारत और अंटार्कटिका शामिल थे। हमारा नया अध्ययन इस विचार का समर्थन करता है कि गम्बुर्त्सेव पर्वत इन प्राचीन महाद्वीपों के बीच हुए टकराव के दौरान अस्तित्व में आए थे। इस टकराव ने पहाड़ों के नीचे गर्म, आंशिक रूप से पिघली हुई चट्टान के प्रवाह को गति दी। पर्वत निर्माण के दौरान भूपर्पटी धीरे-धीरे मोटी, गर्म और अस्थिर हो गई तथा अपने ही भार के कारण टूटने लगी। सतह के नीचे गर्म चट्टानें गुरुत्वाकर्षण प्रसार के तहत समानांतर दिशा में बहने लगीं, ठीक उसी तरह जैसे ट्यूब से टूथपेस्ट निकलता है। 

इससे पहाड़ आंशिक रूप से ढह गए, जबकि एक मोटी पर्पटी “जड़” बची रही, जो पृथ्वी के आवरण में समाई हुई है। ‘टाइम कैप्सूल’ से अवधि का आकलन-इस नाटकीय उभार और विध्वंस की अवधि का आकलन करने के लिए हमने 25 करोड़ साल से भी अधिक समय पहले प्राचीन पर्वतों से बहने वाली नदियों के किनारे इकट्ठा होने वाले बलुआ पत्थरों में पाए जाने वाले सूक्ष्म ‘जिरकोन’ कणों का विश्लेषण किया। ये बलुआ पत्थर सैकड़ों किलोमीटर दूर बर्फ की मोटी परत से ढकी प्रिंस चार्ल्स पर्वतमाला से हासिल किए गए थे।

‘जिरकोन’ को अक्सर “टाइम कैप्सूल” कहा जाता है, क्योंकि उनकी क्रिस्टल संरचना में बेहद कम मात्रा में यूरेनियम पाया जाता है। यूरेनियम में ज्ञात दर पर क्षय होता है, जिसके कारण वैज्ञानिक बहुत सटीकता से उनकी उम्र का निर्धारण कर पाते हैं। इन ‘जिरकोन’ कणों में पहाड़ों के निर्माण की अवधि दर्ज है : गम्बुर्त्सेव पर्वत शृंखला लगभग 65 करोड़ साल पहले बननी शुरू हुई, करीब 58 करोड़ साल पहले उसने हिमालय जितनी ऊंचाई हासिल की और लगभग 50 करोड़ साल पहले भूपर्पटी पिघलने और चट्टानों के बहने की गवाह बनी।

महाद्वीपीय टकरावों से निर्मित ज्यादातर पर्वत शृंखलाएं लगातार क्षरण के कारण अंतत: नष्ट हो जाती हैं। हालांकि, ये बाद में होने वाली टेक्टॉनिक घटनाओं के कारण फिर से आकार ले सकती हैं। चूंकि, गम्बुर्त्सेव सबग्लेशियल पर्वत बर्फ की मोटी चादर के नीचे दबे हुए हैं, इसलिए ये पृथ्वी पर सबसे अच्छी तरह से संरक्षित प्राचीन पर्वत शृंखलाओं में से एक हैं। अंटार्कटिका भूवैज्ञानिक अजूबों से भरा एक विशाल महाद्वीप है और इसकी बर्फ के नीचे दबे रहस्यों का खुलासा अभी शुरू ही हुआ है।

ये भी पढ़े : मुकेश अंबानी दोहा में ट्रंप से करेंगे मुलाकात, रात्रिभोज में होंगे शामिल

 


utkalmailtv

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button