खेल

अजीत सिंह यादव ने ट्रेन दुर्घटना में गंवाया हाथ, कभी कम नहीं हुआ हौसला, बोले-अर्जुन पुरस्कार ने बेहतर करने के लिए किया प्रेरित  – Utkal Mail

नई दिल्ली। पेरिस ओलंपिक में रजत पदक जीतने के बाद अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित होने वाले वाले पैरा भाला फेंक खिलाड़ी अजीत सिंह यादव ने कहा कि ट्रेन दुर्घटना में एक हाथ गंवाने के बावजूद उन्होंने कभी अपना हौसला कम नहीं होने दिया। अजीत ने 2017 में ट्रेन दुर्घटना में अपना बायां हाथ गंवा दिया था। उन्होंने पेरिस पैरालंपिक में 65.62 मीटर के अपने सर्वश्रेष्ठ प्रयास के साथ रजत पदक जीता। इस स्पर्धा का स्वर्ण पदक क्यूबा के गुइलेर्मो वरोना ने 66.14 मीटर के प्रयास के साथ जीता था। 

अजीत ने साक्षात्कार में अर्जुन पुरस्कार को हौसला बढ़ाने वाला करार देते हुए कहा कि यह उन्हें श्रेष्ठता हासिल करने के लिए और अधिक प्रेरित करेगा। उत्तर प्रदेश के इटावा के 31 साल के इस खिलाड़ी ने कहा,  इस पुरस्कार ने मुझे और बेहतर करने के लिए प्रेरित किया है। मैंने पेरिस पैरालंपिक में स्वर्ण पदक के लक्ष्य के साथ गया था लेकिन  लगभग आधा मीटर से मैं शीर्ष स्थान हासिल करने से चूक गया। इस कसर को मैं लॉस एंजिल्स में पूरा करना चाहूंगा। अजीत 2017 में एक दोस्त को बचाने की कोशिश में ट्रेन दुर्घटना का शिकार होकर अपना एक हाथ गंवा बैठे।

 उन्होंने कहा, अपने दोस्त को बचाने की कोशिश में मेरा एक हाथ ट्रेन की पटरी पर आ गया और उसके ऊपर से जब ट्रेन गुजरी तो मुझे लगा की मेरा जीवन ही समाप्त हो गया। यह भयावह मंजर अब भी मेरे सपने में आता है। उन्होंने कहा,  अस्पताल में इलाज के बाद जब घर आया तो मुझे लगा कि जब इस चुनौती का सामना करने में सफल रहा तो फिर हिम्मत नहीं हारनी चाहिये। हाथ ही तो गंवाया है, हौसला तो पूरी तरह से बरकरार है।  खेलों से जुड़ने के बारे में पूछे जाने पर विश्व पैरा चैम्पियनशिप के इस स्वर्ण पदक विजेता (पेरिस 2023) ने कहा कि वह खेलों से पहले से जुड़े रहे हैं लेकिन दुर्घटना से पहले वह शिक्षक बनना चाहते थे। 

उन्होंने कहा, मैं पहले से खेलों से जुड़ा रहा हूं। मैंने शारीरिक शिक्षा में स्नातक और स्नातकोत्तर करने के बाद राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा (एनईटी) पास कर पी.एचडी(डॉक्टर ऑफ फिलॉसफी) किया है। मेरे कॉलेज के एक प्रोफेसर पैरालंपिक से जुड़े थे और उनकी सलाह पर ही मैंने भाला फेंक में हाथ आजमाना शुरू किया। टोक्यो ओलंपिक (2021) में मामूली अंतर से पदक से चूकने वाले इस खिलाड़ी ने कहा,  मुझे शिक्षक बनना था लेकिन शायद किस्मत को कुछ और मंजूर था। उन्होंने कहा कि मौत से जंग जीतने के बाद उनकी सफलता ने यह साबित किया कि हिम्मत और हौसला रख कर किसी भी चुनौती से निपटा जा सकता है। 

अजीत ने कहा, मेरी सफलता उन लोगों के लिए प्रेरणा है जो किसी कारण से अवसाद में चले जाते हैं। अगर मैं इस भयावह मंजर से निकलने में सफल रहा तो कोई भी कुछ भी कर सकता है। उन्होंने देश में भाला फेंक में बढ़ती लोकप्रियता का श्रेय नीरज चोपड़ा को देते हुए कहा,  पैरालंपिक भाला फेंक में देवेंद्र झाझरिया और सुमित अंतिल ने देश का नाम रौशन किया लेकिन इस खेल की लोकप्रियता को बढ़ाने का पूरा श्रेय नीरज चोपड़ा को जाता है। जो युवा आज से छह-साल पहले इसके बारे में कुछ नहीं जानते थे वह भी आज इसका अभ्यास कर रहे हैं।

ये भी पढ़ें : भारत के पूर्व एथलीट सुचा सिंह को पंजाब सरकार की अनदेखी का दर्द अब भी, बोले-थककर छोड़ दी थी अर्जुन पुरस्कार की उम्मीद  


utkalmailtv

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button