लाखों जिंदगियां बचा उत्तर भारत का सबसे बड़ा सेंटर बना ट्रामा… हर साल 1 लाख से अधिक मरीजों का होता इलाज – Utkal Mail

लखनऊ, अमृत विचार। उत्तर भारत ही नहीं, पड़ोसी देश नेपाल के भी गंभीर मरीजों की जिंदगी की आखिरी उम्मीद लखनऊ किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय (केजीएमयू) का ट्रामा सेंटर है। गंभीर घायल और बीमारियों से पीड़ित मरीजों के तत्काल चिकित्सा की जरूरत को पूरा करने का जिम्मा निभा रहा ट्रामा सेंटर यूं ही नहीं उत्तर भारत के सबसे बड़े इमरजेंसी सेंटर के रूप में उभरकर सामने आया है। इसके लिए यहां के डॉक्टरों और स्टाफ ने रात दिन मेहनत की है। आज इन्हीं डॉक्टर और स्टाफ के कार्यों की बात। जिसने ट्रामा सेंटर को बना दिया उत्तर भारत में आपातकालीन चिकित्सा का मेरुदंड…
साल 2003 में शुरू हुआ केजीएमयू का ट्रामा सेंटर 20 साल से ज्यादा का सफर तय कर चुका है। इस बीच ट्रामा सेंटर में इलाज के लिए आये लाखों मरीजों की जान बची। जिसकी वजह यहां के डॉक्टरों की मरीज की जान बचाने की ललक और उनका अनुभव रहा है। यहां के डॉक्टर मरीज की जान बचाने के लिए मेडिकल साइंस में तय नियमों को आधार बनाकर हर वह कोशिश करते हैं जो किताबों में भी नहीं लिखी है। यही कारण है कि इन 20 सालों के सफर में ट्रामा सेंटर ने इमरजेंसी इलाज में कई उपलब्धियां अपने नाम की हैं। जिसमें कोविड के समय यहां पर मरीजों का इलाज भी रहा है।
विशेषज्ञों की मानें तो साल 2003 में जब ट्रामा सेंटर शुरू हुआ तब से लेकर अब तक कई बदलावा हुये। जिसके चलते ट्रामा सेंटर इमरजेंसी इलाज के मामले में पूरी तरह परिपक्व हो चुका है। यही वजह है कि प्रदेश में होने वाले बड़े हादसों में यहीं की टीम राहत एवं बचाव कार्य के दौरान पहुंचती है और घायलों को इलाज देती है। इतना ही नहीं मलिहाबाद गांव में हुये जहरीली शराब कांड हो या फिर कोई अन्य बड़ा हादसा पूरे प्रदेश और पड़ोसी देश नेपाल तक से मरीज यहीं आते हैं।
ट्रामा सेंटर के सीएमएस डॉ. प्रेमराज सिंह के मुताबिक यहां हर साल एक लाख से अधिक मरीज इलाज के लिए पहुंचते हैं, जिसमें उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्यप्रदेश, उत्तराखंड और नेपाल के मरीज शामिल हैं। इनमें से 80 फीसदी से अधिक मरीज स्वस्थ होकर यहां से जाते हैं। यही वजह है कि अब तक ट्रामा सेंटर से लाखों लोग स्वस्थ होकर अपने घर जा चुके हैं। उन्होंने बताया कि मरीजों को इलाज के साथ सरकारी योजनाओं का लाभ मिले इसका भी विशेष ध्यान रखा जाता है।
साल 2016 में शुरू हुआ इमरजेंसी मेडिसिन विभाग
सरकार की मंशा थी कि प्रदेश में फ्रंटलाइन इमरजेंसी केयर बेहतर हो। इसी के चलते साल 2016 में इमरजेंसी मेडिसिन विभाग की शुरूआत हुई। जिसके विभागाध्यक्ष बने प्रो.हैदर अब्बास। प्रो.हैदर अब्बास ट्रामा सेंटर के इंचार्ज भी रहे हैं। प्रो.हैदर अब्बास के मुताबिक इमरजेंसी मेडिसिन विभाग का अर्थ होता है कि जहां पर सभी तरह की एक्यूट बीमारियों का इलाज होता हो। उन्होंने बताया कि इस विभाग को शुरू करने के पीछे की जरूरत यह थी कि इमरजेंसी में इलाज देने के लिए दक्ष लोगों कों फ्रंट लाइन वर्कर बनाया जाये। जिससे ज्यादा से ज्यादा मरीजों की जान बचाई जा सके। जिसका परिणाम आज सबके सामने हैं, यहां इलाज के लिए आने वाले 80 फीसदी से अधिक मरीज स्वस्थ होकर अपने घर वापस लौटते हैं। उन्होंने बताया कि जब यहां पर इमरजेंसी मेडिसिन विभाग की शुरूआत हुई, तब उत्तर प्रदेश के किसी भी चिकित्सा संस्थान में इमरजेंसी मेडिसिन विभाग नहीं था।
केजीएमयू ही वह जगह थी जहां पर पहली बार इमरजेंसी मेडिसन विभाग की शुरूआत हुई। जब से इस विभाग की शुरूआत हुई है तब से गुणवत्तापूर्ण इलाज शुरू हुआ है और गंभीर मरीजों के मृत्युदर में भी कमी आई है। साल 2022 में एमडी की पांच सीटे भी मिल गई। जिसके बाद अब केजीएमयू में इसकी पढ़ाई भी हो रही है। यहां से इमरजेंसी मेडिसिन की पढ़ाई कर निकले छात्र अन्य संस्थानों में भी जा सकते हैं और बेहतर इलाज का रास्ता प्रशस्त कर सकते हैं। प्रो.हैदरअब्बास बताते हैं कि कोविड का दौर चुनौतियों भरा रहा था, कोरोना संक्रमण की जांच और इलाज दोनों कार्यों की व्यवस्था बनी और उस समय भी हमारे विभाग ने चुनौती स्वीकार की। विभाग ने मरीजों को बेहतर इलाज देने में अहम भूमिका निभाई।
एसजीपीजीआई के एपेक्स ट्रामा सेंटर का संचालन भी कर चुके हैं डॉ. संदीप तिवारी
ट्रामा सेंटर में साल 2017 में ट्रामा सर्जरी विभाग की शुरूआत हुई। जिसके विभागाध्यक्ष प्रो.संदीप तिवारी बने। ट्रामा सेंटर को नई ऊंचाईयों तक पहुंचाने में डॉ.संदीप तिवारी का अहम योगदान रहा है। डॉ. संदीप तिवारी साल 2013 से 2014 तक और 2015 से 2019 तक ट्रामा सेंटर के इंचार्ज रहे। उसके बाद दिसम्बर साल 2020 से लेकर अगस्त 2024 तक ट्रामा सेंटर के सीएमएस रहे। अपने लंबे कार्यकाल के दौरान इमरजेंसी सेवा को विकसित करने का श्रेय भी प्रो.संदीप तिवारी को जाता है। यही वजह है कि उत्तर प्रदेश सरकार ने साल 2015 में एसजीपीजीआई के एपेक्स ट्रामा को चलाने की जिम्मेदारी प्रो.संदीप तिवारी को ही सौंपी थी। जिसका संचालन डॉ. संदीप तिवारी ने 2016 तक किया था।
यूपी में पहली बार पीपीई किट पहनकर ट्रामा में प्रो.समीर मिश्रा ने की सर्जरी
कोविड का दौर जो भी याद करता है सहम जाता है, यह वह दौर था जब लोग एक दूसरे से मिलने में डरते थे, उस दौरान भी केजीएमयू ट्रामा सेंटर के डॉक्टर बड़ी ही मुस्तैदी से मोर्चा संभाले मरीजों को इलाज मुहैया करा रहे थे। उन्हीं में से एक डा.समीर मिश्रा का नाम भी काफी अहम है। जिन्होंने उत्तर प्रदेश में पहली बार पीपीई किट पहनकर सर्जरी की। इससे पहले किसी सर्जन ने पीपीई किट पहनकर सर्जरी का कार्य नहीं किया था। प्रो. (डॉ.) समीर उन दिनों को याद करते हैं और बताते हैं कि बहुत ही भयावह वक्त था कोरोना का…लेकिन उस दौरान मरीजों को इलाज देने की भी जिम्मेदारी हमारे कंधों पर थी, ऐसे में हमारे सामने एक ही रास्ता था कुछ भी हो, लेकिन इलाज तो देना ही है। उन्होंने बताया कि मुझसे पहले किसी ने किट पहन कर सर्जरी नहीं की थी, लिहाजा पीपीई किट का अनुभव भी नहीं था, लेकिन किट पहनी और मरीज की सर्जरी शुरू की। उस दिन 15 से 20 मिनट की सर्जरी में करीब एक घंटे का समय लगा। इस दौरान चश्में पर बार-बार भाप का जमना और अधिक परेशानी का कारण बन रहा था, लेकिन मरीज की जान बचाने की सोंच ने परेशानियां काफी हद तक कम कर दी थीं।
ट्रामा सेंटर बनाता है परिपक्व
डॉ. समीर बताते हैं कि अनुभव और ट्रामा सेंटर में मरीजों के इलाज में बिताया समय एक डॉक्टर को परिपक्व बनाता है। उन्होंने उदाहरण देते हुये बताया कि एक मरीज उनके पास आया जिसके पूरे शरीर से सरिया आरपार हो गई थी, सर्जरी के लिए उस मरीज को बेड पर भी नहीं लिटा सकते थे, ऐसे में दो स्ट्रेचर को जोड़कर मरीज के लिए बेड बनाया गया। मरीज को दोनों स्ट्रेचर के ऊपर रखा गया और ओटी में ले जाकर उसी तरह ओटी टेबल पर लिटा दिया गया। जिससे उसकी सर्जरी हो सकी। डॉ. समीर यह भी कहते हैं कि किताबों में लिखी बात को आधार बनाकर कई बार इलाज के लिए नई तकनीक तक विकसित करनी पड़ती है, जिसका मौका ट्रामा सेंटर में ही मिलता है।
बिजली विभाग का कर्मचारी जब बना देवदूत
डॉ. समीर मिश्रा बताते हैं कि एक बार एक तीन साल की बच्ची जिसके शरीर में कई सरिया घुसी हुई थी। उस बच्ची को लेकर बिजली विभाग का एक कर्मचारी ट्रामा सेंटर पहुंचा। जिसके बाद हमारी टीम ने सर्जरी कर बच्ची की जान बचा ली। बच्ची के लिए वह कर्मचारी ही देवदूत बनकर आया था। जब हमलोग ने पूरी जानकारी की तो पता चला एक निर्माणाधीन मकान के पिलर में निकली हुई सरिया पर बच्ची गिर गई थी। इस दौरान वहां बिजली विभाग का कर्मचारी भी काम कर रहा था, कर्मचारी ने उस बच्ची को देखा और जिस तरह से कटर से सरिया काटकर बच्ची को लेकर ट्रामा सेंटर आया। उस तरीके ने ही बच्ची की जान बचाने में अहम भूमिका निभाई।
सीसीएम, ट्रामा वेंटीलेटर यूनिट और ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन विभाग की भूमिका अहम
ट्रामा सेंटर में सीधे तौर पर 15 विभाग काम करते हैं, लेकिन गंभीर मरीजों को इलाज देने में अन्य विभागों के साथ सीसीएम, ट्रामा वेंटीलेटर यूनिट और ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन विभाग का रोल खासा अहम माना जाता है। क्रिटिकल केयर मेडिसिन विभाग (सीसीएम) और ट्रामा वेंटीलेटर यूनिट जहां एक तरफ गंभीर मरीजों को गुणवत्तापूर्ण गहन चिकित्सा सुविधा उपलब्ध करा रहे हैं। जिसका श्रेय सीसीएम के विभागाध्यक्ष डॉ. अविनाश अग्रवाल और ट्रामा वेंटीलेटर यूनिट के प्रभारी डॉ. जिया अरशद को जाता है। वहीं दूसरी तरफ इन सभी विभागों में आये कई मरीजों को ब्लड की जरूरत होती है। जिसके चलते हर महीने करीब 600 यूनिट ब्लड ट्रामा सेंटर को ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन विभाग की विभागाध्यक्ष प्रो.तूलिका चंद्रा की तरफ से उपलब्ध कराया जाता है। इसमें कई मरीजों को बिना डोनर ही ब्लड विभाग की तरफ से दिया जाता है, जिससे मरीजों को इलाज के समय ब्लड की कमी न होने पाये।
लावारिस मरीजों के मसीहा बने प्रो.बीके ओझा
केजीएमयू के सीएमएस और न्यूरो सर्जरी विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो.बीके ओझा लावारिस मरीजों के लिए मसीहा से कम नहीं हैं। सड़क दुर्घटना में घायल 100 से अधिक लावारिस मरीजों को निशुल्क इलाज देने के साथ ही उन मरीजों को उनके घर भी पहुंचा चुके हैं। ट्रामा सेंटर में न्यूरो सर्जरी विभाग महत्वपूर्ण भूमिका में हैं। शुरूआती दौर में लावारिस मरीजों को यहीं इलाज दिया जाता है। डॉ. बीके ओझा ने साल 1997 से 2000 के बीच में दिल्ली एम्स से एमसीएच की पढ़ाई पूरी की, उन्हें लावारिस मरीजों को इलाज देने का विचार अपने गुरु डॉ.एके महापात्रा को देखते हुये आया है। डॉ. एके महापात्रा ने लावारिस मरीजों को बेहतर इलाज देने का जो तरीका सिखाया, उसी के आधार पर बीके ओझा लगातार लावारिस मरीज को इलाज देते आ रहे हैं, उन्होंने विभाग में ऐसी व्यवस्था बनाई है जो लावारिस मरीजों को सरकारी योजनाओं का लाभ भी दिला रही है। जिससे उनके इलाज में कोई दिक्कत नहीं आती है।
हर साल 6 लाख नमूनों की होती है जांच
मरीजों के इलाज में रक्त के नमूनों की जांचों का विशेष महत्व होता है। इन जांचों के बिना सटीक इलाज होना मुश्किल है। यही वजह है कि ट्रामा सेंटर में साल 2006-07 में पैथोलॉजी विभाग की तरफ से ब्लड कलेक्शन सेंटर की शुरूआत की गई थी। जिसका स्वरूप अब काफी बड़ा हो चुका है, इतना ही नहीं कई जांचें भी यहां पर होती हैं। मौजूदा समय में रोजाना 2000 के करीब रक्त के नमूने जांच के लिए आते हैं। साल भर में यह संख्या 6 लाख के पार हो जाती है। विभाग के डॉ. वाहिद अली बताते हैं कि एक नमूने में करीब चार से पांच जांचे आवश्यक रूप से होती हैं। डॉ. वाहिद के मुताबिक सभी विभागों में इलाज के लिए आये मरीजों को बेहतर जांच की सुविधा मिले इसके लिए विभागाध्यक्ष प्रो.यूएस सिंह के निर्देश पर विशेष व्यवस्था बनाई गई है। जिससे मरीजों की जांच समय पर हो रही है और उनकों सटीक इलाज मिल रहा है।
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