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पीआर श्रीजेश ने कहा- पेरिस ओलंपिक में प्रदर्शन में निरंतरता होगी सफलता की कुंजी – Utkal Mail

नई दिल्ली। बरसों बाद भारतीय पुरुष हॉकी टीम ओलंपिक में पदक विजेता के रूप में उतरेगी और अपेक्षाओं के दबाव को ऊर्जा का स्रेात मानने वाले अनुभवी गोलकीपर पीआर श्रीजेश ने कहा कि टीम का फोकस प्रदर्शन में निरंतरता पर है जो ओलंपिक में कामयाबी की कुंजी साबित होता है।

श्रीजेश ने भुवनेश्वर से दिये इंटरव्यू में कहा, पिछली बार तक सभी बोलते थे कि हमारा हॉकी में गौरवशाली इतिहास है और हमें ओलंपिक में पदक जीतना है। इस बार हमारे पास पदक है और अपेक्षायें बढ गई है और हमने उसके बाद से अच्छा प्रदर्शन भी किया है। यह सकारात्मक दबाव है और याद दिलाता है कि हम पदक जीतने में सक्षम हैं।  भारतीय पुरूष हॉकी टीम ने 41 साल का इंतजार खत्म करते हुए तोक्यो ओलंपिक में कांस्य पदक जीता था। जर्मनी के खिलाफ कांस्य पदक के मुकाबले में 3-1 से पिछड़ने के बाद भारत ने अविश्वसनीय वापसी करके 5-4 से मैच जीता था और जीत के नायक श्रीजेश थे।

केरल के इस गोलकीपर ने कहा, हमारी टीम का मंत्र है कि आउटसोर्स दबाव को बाहर ही रखो , उसे भीतर लेकर मत आओ। दबाव हम खुद बनाते हैं , परिवार का, महासंघ का, दर्शकों का, मीडिया का, सोशल मीडिया का दबाव। लेकिन हम उसे टीम में नहीं लाते और अपने खेल पर फोकस रखते हैं । अपनी ताकत, कमजोरियां, लक्ष्य बस इस बारे में ही सोचते हैं। अपने कैरियर में 16 अंतरराष्ट्रीय पदक जीत चुके पद्मश्री श्रीजेश ने कहा,  दबाव ओलंपिक का हिस्सा है लेकिन हम उसे सकारात्मक लेकर ऊर्जा का स्रोत के रूप में इस्तेमाल करते हैं। 

उन्होंने कहा, पिछले चार साल में टीम में और कोचिंग स्टाफ में बदलाव हुआ और माहौल भी बदला है । लेकिन लक्ष्य एक ही है कि हमें ओलंपिक पदक जीतना है और वही सभी के दिमाग है । कई बार निचली रैंकिंग की टीम से हमें कड़ी चुनौती मिली है लिहाजा हम निरंतरता पर फोकस कर रहे हैं । ओलंपिक में पहले दिन से आखिरी दिन तक हॉकी के मैच होते हैं । पिछले मैच को भुलाकर तुरंत अगले मैच पर फोकस करना जरूरी होगा और यही निरंतरता काम आयेगी ।’’ भारतीय क्रिकेट टीम के 2011 विश्व कप विजयी अभियान में सेवायें दे चुके खेल मनोवैज्ञानिक पैडी अपटन पेरिस ओलंपिक में हॉकी टीम के साथ रहेंगे और श्रीजेश का मानना है कि उनका अनुभव काफी उपयोगी साबित होगा।

श्रीजेश ने कहा, अपटन ने विश्व कप 2011 के दौरान भारतीय क्रिकेट टीम के साथ काम किया है । वह भारतीयों की मानसिकता समझते हैं क्योंकि क्रिकेटरों पर दबाव हमसे कहीं ज्यादा होता है । वह इसे अनुभव कर चुके हैं तो उनके लिये ओलंपिक में हमारे साथ काम करना कमोबेश आसान होगा । दूसरे देश में खेलने पर वैसे भी उतना दबाव नहीं होगा जो 2011 में क्रिकेट टीम पर था।  उन्होंने कहा, वह महेंद्र सिंह धोनी, सचिन तेंदुलकर, विराट कोहली का उदाहरण देते हैं । मैं इन सभी से प्रेरणा लेता हूं । जिस तरह से दबाव का वे सामना करते हैं , खराब दौर के बाद वापसी करते हैं। मसलन कैसे विराट ने विश्व कप में शानदार प्रदर्शन करके वापसी की। इससे उम्मीद जगती है कि अगर फॉर्म और फिटनेस है तो आप शीर्ष स्तर पर खेल सकते हैं । भारत में उम्र को लेकर काफी हौव्वा बनाया जाता है लेकिन इन खिलाड़ियों ने स्टीरियोटाइप तोड़ा है।

 भारतीय टीम को युवाओं और अनुभवी खिलाड़ियों का अच्छा मिश्रण बताते हुए उन्होंने कहा, टोक्यो ओलंपिक टीम का हिस्सा रहे कई खिलाड़ी इस कोर ग्रुप का हिस्सा है जिससे अतिरिक्त फायदा होगा । अराइजीत हुंडल, अभिषेक, सुखजीत जैसे युवा खिलाड़ी बाद में जुड़े । युवाओं के आने से टीम में स्वस्थ प्रतिस्पर्धा बढती है जिससे अनुभवी खिलाड़ियों को भी टीम में जगह बनाये रखने के लिये और प्रयास करने की प्रेरणा मिलती है। टीम में अपनी भूमिका के बारे में पूछने पर उन्होंने कहा कि वह खुद सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन के साथ युवाओं के लिये मेंटोर की भूमिका निभाना चाहते हैं। 

उन्होंने कहा, मैं जब भी पैड पहनता हूं तो यही सोचता हूं कि यह मेरा आखिरी मैच है और मैं अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करूं। मैं चाहूंगा कि मुझे एक बेहतरीन गोलकीपर के रूप में याद रखा जाये लेकिन उससे ज्यादा एक अच्छे इंसान के रूप में याद रखा जाना चाहता हूं। एक ऐसा सीनियर जो खराब समय में आपके साथ खड़ा था और अच्छे दौर में आपके साथ जश्न मनाया।, ओलंपिक स्वर्ण के साथ विदा लेने के सपने के सवाल पर उन्होंने कहा, मैं पेरिस में पदक का रंग बेहतर करना चाहता हूं । उसके बाद तय करूंगा कि भविष्य क्या होगा । अभी मैं सिर्फ ओलंपिक फाइनल तक के बारे में सोच रहा हूं।

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