Chaitra Navratri 2025 :कालीमठ का जरूर करे दर्शन, नवरात्री पर मिलेगी मां की अनुकंपा, कट जाएंगे सारे दुःख – Utkal Mail

अमृत विचार। देवी देवताओ की धरती उत्तराखंड का एक ऐसा सिद्ध शक्तिपीठ मंदिर जहां देवी काली की पूजा की जाती है। ये मंदिर तंत्र साधना में कामाख्या मंदिर के सामान स्थान रखता है। इस मंदिर का वर्णन स्कन्द पुराण में भी है। वहीं, इस मंदिर की सबसे खास बात यह है कि यहां पर कोई मूर्ति विद्यमान नहीं है। नवरात्री पर इस मंदिर में देश के अलग अलग राज्यों से भक्त माता के कालीमठ मंदिर में दर्शन के लिए आते है।
बता दें कि इस कालीमठ का वर्णन कई धार्मिक ग्रंथो में मिल जाता है। ऐसी कथा है कि जब पृथ्वी पर राक्षसों का आंतक बढ़ गया था तब देवताओं ने शक्ति उपासन की थी। देवताओं ने देवी को प्रसन्न किया जिससे मां अवतरित हुई और रक्तबीज, शुंभ-निशुंभ के आंतक को सुनकर क्रोधित हो उठी। जिससे उनका शरीर काला पड़ने लगा। जिसके बाद उन्होंने राक्षसों का वध किया।
कालीशीला के रूप में राक्षसों का वध
12 वर्ष की बालिका के रूप में अवतरित माता कालीशिला, कालीमठ मंदिर से 8 किमी खड़ी ऊंचाई पर स्तिथ है। ऐसा कहा जाता है कि इस शिला पर माता के पैरों के निशान होने की बात भी कही जाती है। कहते है कि कालीशीला में प्रकट होने के बाद मां काली और रक्तबीज के बीच महायुद्ध हुआ था। क्योकि रक्तबीज को ये वरदान मिला था कि उसके शरीर की हर बूंद से नया रक्तबीज जिंदा होगा। तो माता ने रक्तबीज का वध करने पर उसके रक्त का पान कर लिया था। और जिस शिला पर मां काली ने रक्तबीज का संघार किया। उस शिला को रक्त बीजशिला के नाम से जाना जाने लगा।
कुंड के रूप में होती है पूजा
मां काली ने शुंभ-निशुंभ के आंतक से भक्तों को मुक्त किया। राक्षसों का वध करने पर भी माता को क्रोध शांत नहीं हुआ। मां का ऐसा रूप देख सभी घबराने लगे, तब भगवान शिव ने माता का क्रोध शांत करने के लिए मां के पैरों के निचे लेट गए। जैसे ही माता ने अपने पैरों के निचे शिव को पाया। वह शांत होकर अन्तर्ध्यान हो गई। और ऐसी मान्यता है कि जहा पर माता अन्तर्ध्यान हुई उस स्थान को कालीमठ के नाम से जाना जाने लगा। इस स्थान पर इसीलिए कोई भी माता की मूरत नहीं है। बल्कि कुंड में यन्त्र के रूप में इनकी पूजा की जाती है।
तंत्र-मंत्र की पूजा का अत्यधिक महत्व
कालीमठ मंदिर किसी मूर्ति की नहीं बल्कि कुंड के बीच यंत्र की पूजा की जाती है। शारदीय नवरात्री के अवसर पर ही यहां का कुंड खोला जाता है और इसकी पूरे विधि-विधान से पूजा की जाती है। मंदिर का पुजारी इस पूजा को संपन्न करते है। लोग साल भर इसके दर्शन के लिए यहां आते रहते है।
मान्यता है कि इस स्थान पर देवीकाली को 64 मंत्रों की शक्ति और 63 योगिनियां विचरण करती है यहां पर तंत्र साधना जल्दी फलित होती है। ये मंदिर तंत्र साधकों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस मंदिर में देवी के निचले भाग यानि धड़ पूजा होती है वहीं उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल ज़िले में श्रीनगर में देवी धारी में ऊपरी भाग यानि सिर की पूजा होती है।
इस मंदिर के दर्शन नवरात्री में अत्यंत शुभ माने जाते है। इस दिन पर देवी अपने भक्तों की हर मनोकामना पूर्ण करती है। वहीं यहां पर तंत्र-मंत्र, साधना के जरिये आध्यात्मिक ज्ञान को ग्रहण करना चाहते है। इस दिन कालीमठ में दर्शन मात्र से आत्मिक शुद्धि हो जाती है।
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Disclaimer:यह जानकारी धार्मिक मान्यताओं के आधार पर दी गई है। इसका कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है। अमृत विचार इसकी पुष्टि नहीं करता है।