धर्म

सावन गीतों की फुहार से भीगा कजरी दंगल, हरे रंग के परिधानों में महिलाओं ने गाया बुंदेली सावनी, चौमासा और राछरा – Utkal Mail

लखनऊ, अमृत विचार: गोमती नगर स्थित पारुल्स ग्रामोफोन में पारंपरिक ढंग से सावन मनाया गया। महिलाएं हरे रंग के परिधानों में कार्यक्रम में शामिल हुईं। सावनी सलोनी के नाम से सजी इस यादगार शाम में महिलाओं ने कजरी, चौमासा के साथ बुंदेली सावनी और राछरा भी गाया। शैल अग्रवाल और दीपशिखा को सावनी सलोनी का खिताब दिया गया। कजरी की कार्यशाला में आधुनिक युग में अपनी परंपरा से जुड़ना जरूरी बताया गया।

अरे रामा रिमझिम बरसे पनिया, बरसन लागी बदरिया, प्यारी लगे झूला की बांकी बहार, गर्जत सावन आयो, नई झूलनी की छाया बलम इत्यादि कई गीत गाए और सिखाए गए। गीत संगीत के बीच यहां कजरी दंगल का भी आयोजन हुआ। एक भी गीत-संगीत की रिकॉर्डिंग नहीं बजी। सब कुछ लाइव ही गाया और बजाया गया। हारमोनियम पर अंजू श्रीवास्तव, तबले पर सुजीत और ढोलक पर शत्रुघ्न यादव संगत कर रहे थे। इस महफ़िल को बनारस घराने की दीपशिखा चंद्र, निवेदिता, नंदना, स्वाति, अमिता, कमला, श्रृंखला, आभा, पल्लवी, रूमा, नीलम, निशि, पारुल ने परवान चढ़ाया। अल्मोड़ा की ऋतु वर्मा ने संचालन किया तो उत्तराखंड के सावन गीत की झलक भी ऋतु ने प्रस्तुत की।

सिलबट्टे पर पीसी मेहंदी और पैरों में लगाया आलता

सावनी सलोनी कार्यक्रम में पुरस्कार के लिए उन्हें चुना गया जिन्होंने साड़ी या लहंगे के साथ कोई और ब्लाउज या दुपट्टा पहना। पुरस्कार उसे भी मिला जो सबसे दूर से आया और जिसने किसी का गिफ्ट किया हुआ कपड़ा पहना। या कोई कजरी से संबंधित मुश्किल सवालों का जवाब दिया। जैसे कजरी में पद्मश्री किसको मिला, कजरी किन भाषाओं में गाई जाती है इत्यादि। पारुल शर्मा ने बताया की यहां कोई भी प्रतिस्पर्धा कला के आधार पर और बाहरी सुंदरता, कपड़ों इत्यादि को लेकर कभी नहीं हुई होगी। सिलबट्टे पर पीसी गई मेहंदी लगाई गई, पैरों में आलता और सभी पारम्परिक साज सामान से यह शाम सजाई गई। प्रतिभागियों को पारंपरिक स्वाद जैसे फरे, कचौरी, सब्जी, रायता और गुलगुले पत्तल में परोस कर दिये गए। सबको लड्डू और सुहाग का सामान देकर विदा किया गया।

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