भारत
सरकार के उपेक्षा का शिकार भेंडरा लौह कुटीर उद्योग
नावाडीह (बेरमो) : शेफील्ड ऑफ झारखंड के नाम से विख्यात नावाडीह प्रखंड के लौह कुटीर उद्योग गांव भेंडरा में देवदूत सेवा संस्थान की ओर से 19 नवंबर को स्थानीय लौह प्रशिक्षण सह उत्पादन केन्द्र में भेंडरा महोत्सव सह अभिनंदन समारोह का आयोजन किया जाएगा । जानकारी मुखिया नरेश कुमार विश्वकर्मा ने दी । उन्होंने बताया कि महोत्सव में लौह कुटीर उद्योग के कुशल कारीगरों की ओर से निर्मित लौह सामग्री का प्रदर्शनी तथा प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से यह उद्योग को बढ़ावा देने वाले को सम्मानित भी किया जाएगा । कार्यक्रम में सूबे के शिक्षा मंत्री जगरनाथ महतो, गिरीडीह सांसद चंद्रप्रकाश चौधरी, जिप अध्यक्ष सुनीता देवी, उपायुक्त कुलदीप चौधरी, उप विकास आयुक्त कीर्ति श्री, एंड आईएसएम धनबाद के निदेशक के अलावा अन्य कई गणमान्य उपस्थित रहेंगे । मुखिया ने बताया कि यह कार्यक्रम कारीगरों को प्रोत्साहित करने को आयोजित किया जा रहा है ।
आज भी उपेक्षित है भेंडरा : लौह कुटीर उद्योग के नाम से विख्यात एवं शेफील्ड ऑफ बिहार से विभूषित नावाडीह प्रखंड के भेंडरा गांव आज भी उपेक्षित महसूस कर रहा है । भारत आजादी के बाद से इस गांव को विकसित करने को केन्द्र व राज्य के कई मंत्री व अधिकारियों के आना जाना लगा रहा । यहां निरीक्षण को पहुंचे हर कोई ने इसके चहुंमुखी विकास करने की बात कहीं । किन्तु यहां के कुशल कारीगरों की स्थिति पूर्ववर्त बनी हुई है । जबकि यहां के निर्मित लौह सामाग्री का उपयोग घरेलु उपयोग के अलावा कोयला खदान, रेल व सेना को भी सप्लाई की जाती है । यह काम में मुख्य रुप से विश्वकर्मा (लौहार) जाति के लोग जुड़े हैं ।
मुगल काल से बन रहे है औजार : भेंडरा गांव के लौह कुटीर उद्योग की चर्चा पूरे उत्तर भारत में है । मुगल काल के समय से ही यहां के लौह कर्मियों द्वारा लौह से निर्मित हथियार बनाए जाते रहे है । यहां मुख्य रुप से हथौड़ा, गदासा, गैता, तलवार, कटार, भुजाली, फरसा, भाला आदि बनाए जाते है । यहां बने औजारों की गुणवत्ता से प्रभावित होकर मुगल काल में शेरशांह अपनी फौज के लिए यहां के निर्मित भाला, गड़ासा व अन्य हथियार मंगवाते थे । द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान कलकता की ख्याति प्राप्त कंपनियों के माध्यम से ब्रिटिश सरकार को सड़क निर्माण के औजार की आपूर्ति कर चुके हैं ।
शेफील्ड ऑफ बिहार से विभूषित है भेंडरा : भेंडरा के लौह कर्मियों की कार्यकुशलता और उत्पादित लौह औजारों की गुणवत्ता से प्रभावित होकर वर्ष 1952 में यहां के कुटीर उद्योग की सर्वेक्षण करने फोर्ड फाउंडेशन की विश्व प्रसिद्ध टीम पहुंची । इसके बाद यहां केन्द्र सरकार के उद्योग मंत्रालय के कई अधिकारियों का बीच बीच में आना लगा रहा । यहां कारीगरों की कार्यकुशलता को देख टीम में शामिल लोगों के मुंह से यह स्वर स्वत: निकल पड़ा था कि भेंडरा इज द शेफील्ड ऑफ बिहार । वर्ष 1965 में बिहार सरकार की ओर से वर्कशॉप कम शेड का निर्माण, वर्ष 2001 में ब्लैक स्मिथ ट्रेनिंग कम प्रोडक्शन सेंटर भवन का निर्माण कराया गया है ।
औजारों का कई जगह किया गया प्रदर्शन : यहां के कारीगरों द्वारा निर्मित औजारों को दिल्ली, पटना, रांची आदि जगह लगे प्रदर्शनी में प्रदर्शित किया गया । अंतराष्ट्रीय व्यापार मेला में भी यहां के उद्यमियों ने अपना स्टॉल लगाकर वाहवाही लूट चुकी है । झारखंड गठन बाद 24 मार्च 2001 को रांची में आयोजित वेडर डेवलपमेंट प्रोग्राम के तहत क्रेता, विक्रेता मिलन सह प्रदर्शनी में औद्योगिक ग्राम उद्योग सहयोग समिति लिमिटेड भेंडरा पंचायत के बैनर तले यहां के लौह उद्यमियों ने अपने औजारों का लगाए गए स्टॉल का निरीक्षण उपरांत तत्कालीन राज्यपाल प्रभात कुमार, लघु सेवा संस्थान नई दिल्ली के विकास आयुक्त पीके गोल सहित शीपवार्ड गोवा व मुंबई के अधिकारियों ने भेंडरा उद्योग को देखने व विकसित करने का भरोसा दिया था । इस वर्ष 2019 में बोकारो में लगे स्टॉल में बोकारो उपायुक्त ने भेंडरा के औजार की खूब प्रशंसा की । किन्तु सवाल उठता है कि हर कोई भेडरा के औजार की सराहना व प्रशंसा करते है साथ ही समुचित विकास का भरोसा भी देते है । किन्तु गुजरते समय के साथ सभी का आश्वासन अब तक कोरा ही साबित होता आ रहा है ।
कच्चे माल का है घोर अभाव : भेंडरा लौह कुटीर उद्योग के विकास का सबसे बड़ा बाधक यहां कच्चे माल की आपूर्ति डिमांड अनुरूप नहीं हो पाता है । प्रशासन की ओर से लोहा व कोयला की समुचित व सरल तरीके से व्यवस्था नहीं कराने कारण लौह उद्यमियों की परेशानी दोगुनी बनी रहती है । इसके अलावा बाजार के अभाव सहित जटिल कागजी प्रक्रिया को वजह से ब्रांडेड लौह समाग्री की गुणवत्ता का टक्कर देने के बावजूद भेडरा के लौह सामाग्री कम कीमत में बेचने को विवश है ।