गर्भ में ही पता चल गया था नहीं है पैर, केजीएमयू ने दी हौसलों को उड़ान – Utkal Mail

Pankaj Dwivedi, Lucknow : धन्य हैं इस बेटी के माता-पिता और उन माता-पिता के लिए नजीर भी जो बेटी को बोझ समझते हैं। कोख में ही मारने की कोशिश करते हैं या फिर जन्म लेने के बाद कूड़े में फेंक देते हैं। ये वो हैं जिन्हें गर्भ में पल रही बच्ची के पैर न होने की जानकारी हो गई थी, अल्ट्रासाउंड रिपोर्ट के बाद चिकित्सकों ने विकृत बच्चा होने का हवाला दिया। रिश्तेदारों ने गर्भपात कराने की सलाह तक दे डाली, लेकिन एक मां गर्भ में पल रहे बच्चे से किए गए वादे को कैसे भुला देती। उसने बच्चे के साथ कई तरह के सपने संजोए थे। समय पूरा होने पर बच्ची ने जन्म लिया, उसे उड़ने के लिए पंख किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय (केजीएमयू) के फिजिकल मेडिसिन एंड रिहैबिलिटेशन (पीएमरआर) विभाग ने लगाए। बच्ची अब 10 साल की हो चुकी है। साल में एक बार कृत्रिम पैर लगवाने के लिए केजीएमयू आती है। अब वह सामान्य बच्चों की तरह न सिर्फ उछल कूद करती है, बल्कि स्कूल में होने वाली दौड़ और नृत्य प्रतियोगिता में भी प्रतिभाग करती है।
जन्म के बाद अवसाद में आ गए थे परिजन
महाराष्ट्र के जलगांव, भुसावल के रहने वाले कमालुद्दीन शेख सिलाई का काम कर पत्नी तरन्नुम निशा और तीन बेटियां मंतशा, फातिमा और जीनत शेख के साथ रहते हैं। मंतशा बीकॉम सेकेंड ईयर, फातिमा कक्षा आठ और तीसरी बेटी जीनत कक्षा-3 में पढ़ाई कर रही है। जीनत के नाना मो.यूनुस लखनऊ में पारा क्षेत्र में रहते हैं। यूनुस बताते हैं कि जब जीनत करीब 5 माह के गर्भ में थी तभी अल्ट्रासाउंड रिपोर्ट में उसके पैर न होने की जानकारी हो गई थी। जन्म के बाद घर के सदस्य अवसाद में चले गए थे। इस बीच उन्हें केजीएमयू में कृत्रिम अंग बनने की जानकारी हुई। जीनत एक साल की थी तभी वह केजीएमयू के संपर्क में आ गए थे। यहां प्रोस्थेटिक ऑर्थोटिक यूनिट की प्रभारी शगुन सिंह के प्रयास से बच्ची का इलाज शुरू हुआ।
उम्र कुदरत और लंबाई केजीएमयू बढ़ा रहा
प्रोस्थेटिक ऑर्थोटिक यूनिट की प्रभारी शगुन सिंह बताती है कि बच्ची का एक साल की उम्र में यहां से इलाज शुरू हो गया था। बच्ची के घुटने के नीचे के पैर नहीं हैं। शुरुआत में नाप लेकर कृत्रिम जूते बनाए गए। अब उसकी उम्र बढ़ना तो कुदरत की देन है लेकिन उसकी लम्बाई केजीएमयू बढ़ा रही है, यानि साल में एक बार उसे केजीएमयू आना पड़ता है। वहीं, नाना यूनुस का कहना है कि गर्मियों की छुट्टियों में वह इलाज के बहाने पारा स्थित अपने ननिहाल आ जाती है।
कोई स्कूल दाखिला लेने को तैयार नहीं था, पढ़ाई में है मेधावी
नाना यूनुस का कहना है कि जीनत अब 10 साल की है। शुरुआत में कोई भी स्कूल उसका दाखिला नहीं ले रहा था। इसलिए उसकी पढाई काफी देर से शुरू हो पाई। अब वह कक्षा-3 की छात्रा है। पढाई में इतनी तेज है कि वह अपने सीनियर बच्चों का भी होम वर्क कराने में मदद करती है। स्कूल में सभी षिक्षकों की चहेती बनी हुई है।
जब दिव्यांग बोर्ड भी सकते में आ गया
यूनुस के मुताबिक दिव्यांग प्रमाणपत्र बनवाने के लिए जीनत को सीएमओ कार्यालय के दिव्यांग बोर्ड के सामने पेश किया गया। वह स्वयं चलकर अधिकारियों के सामने गई। जबकि, आवेदन फॉर्म में दोनों पैर न होने का हवाला दिया गया था। यह देख अफसर सकते में आ गए। शुरुआत में वह उसे दिव्यांग मानने को ही तैयार नहीं हुए बाद में कृत्रिम पैर दिखाने पर उन्हें विश्वास हुआ।
केजीएमयू में 1972 से बन रहे कृत्रिम अंग
पीएमआर विभाग के अध्यक्ष डॉ. अनिल गुप्ता ने बताया लिंब सेंटर में कृत्रिम अंग बनाने का काम 1972 से किया जा रहा है। यहां उच्च तकनीक से कम पैसों में अंग उपलब्ध कराए जा रहे हैं। सबसे पहले जिसको कृत्रिम अंग लगाना होता है उसका पैर या हाथ सही आकार में काट कर सही माप लेते हैं। इसके बाद भौतिक चिकित्सा एवं पुनर्वास विभाग (डीपीएमआर डिपार्टमेंट) में सही पैर का मेजरमेंट किया जाता है। इसके बाद टीम मरीज के पहले पैर या हाथ जैसे ही कृत्रिम अंग तैयार करते हैं। इसके बाद मरीज को अंग पहनने का प्रशिक्षण दिया जाता है।
कृत्रिम अंगों के प्रति बढ़ रही जागरुकता
डॉ. अनिल गुप्ता के मुताबिक कृत्रिम अंगों को लेकर जागरुकता बढ़ी है। विभाग में गत वर्ष 11 माह में 29 हजार 121 मरीजों का इलाज हुआ। 2450 छोटे व 108 मरीजों के बड़े ऑपरेशन हुए हैं। पहली जनवरी से 30 नवंबर तक विभाग में 7616 मरीजों को ऑक्यूपेशनल थैरेपी दी गई। इसके अलावा 7847 मरीजों को फिजियोथैरेपी देकर ठीक किया गया। 372 कृत्रिम अंग और 2604 कैलिपर्स लगाए गए। 11 महीने में 50 हजार मरीजों का एक्स-रे हुआ। डॉ. अनिल के मुताबिक साल-दर-साल कृत्रिम अंग व सहायक उपकरणों की मांग बढ़ रही है। लिंब सेंटर में हर साल करीब 150 से ज्यादा कृत्रिम अंग तैयार किए जा रहे हैं। सहायक उपकरण 7000 से ज्यादा बनाए जा रहे हैं।
निजी कंपनियों के मुकाबले 90 फीसदी तक सस्ते
प्रो.अनिल के मुताबिक सेंटर में पूरे प्रदेश से मरीज रेफर होकर आते हैं। सेंटर की खासियत यह है कि यहां चार से छह हजार रुपये में पैर व अन्य अंग बन जाते हैं। जबकि निजी कंपनियों में इसकी कीमत 50 से 60 हजार तक की होती है। इसके अलावा गरीबों के लिए सरकारी फंड और निजी संस्था के माध्यम से मुफ्त में भी अंग लगाए जा रहे हैं।
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