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बिहार में किसकी होगी सरकार… तेजस्वी के चेहरे पर खेलेगा महागठबंधन दांव ! बोले भाकपा प्रमुख- हमारा सीएम एक ही घोषित और अघोषित का कोई फर्क नहीं – Utkal Mail

नई दिल्ली। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माले) लिबरेशन के महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य ने बुधवार को कहा कि बिहार विधानसभा चुनाव में ‘महागठबंधन’ की तरफ से मुख्यमंत्री का चेहरा राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के नेता तेजस्वी यादव हैं और उनका नाम “घोषित या अघोषित” होने से कोई फर्क नहीं पड़ता। उन्होंने कहा कि इसमें कोई असमंजस नहीं होना चाहिए कि ‘महागठबंधन’ के चुनाव जीतने पर मुख्यमंत्री तेजस्वी होंगे। भट्टाचार्य ने अपनी पार्टी के लिए पिछली बार से अधिक सीटों की परोक्ष रूप से दावेदारी करते हुए कहा कि भाकपा (माले) लिबरेशन इस बार 40-45 विधानसभा सीटों पर जमीनी स्तर की तैयारी कर रही है। 

बिहार विधानसभा चुनाव इस साल अक्टूबर-नवंबर में होने की संभावना है। वर्ष 2020 के विधानसभा चुनाव में भाकपा (माले) लिबरेशन 19 सीट पर चुनाव लड़ी थी और 12 पर जीत हासिल की थी। बिहार में ‘इंडिया’ गठबंधन (इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इन्क्लूसिव अलायंस) के घटक दलों के गठजोड़ को महागठबंधन के नाम से जाना जाता है। इस गठबंधन में वाम दलों के साथ ही राष्ट्रीय जनता दल (राजद), कांग्रेस और विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) शामिल हैं। 

यह पूछे जाने पर कि भाकपा (माले) लिबरेशन कितनी सीट पर चुनाव लड़ेगी तो भट्टाचार्य ने कहा, “पिछले विधानसभा चुनाव से यह धारणा है कि यदि माले को अधिक सीटें चुनाव लड़ने के लिए मिली होतीं तो हम लोग सत्ता में होते। कांग्रेस को लड़ने के लिए 70 सीटें मिली थीं, लेकिन उसने 19 जीतीं। हमें 19 सीटें मिली थीं हमने 12 जीतीं। लोकसभा चुनाव में हमें तीन सीटें मिलीं और हम दो जीते।” उन्होंने कहा कि पिछले विधानसभा चुनाव में जिन क्षेत्रों में माले मजबूती से चुनाव लड़ी और जीती, उन्ही क्षेत्रों में राजद और कांग्रेस का प्रदर्शन भी सबसे अच्छा था। उनके अनुसार, “पिछली बार हम सिर्फ 12 जिलों में लड़े थे। हमारा मानना है कि अब 24- 25 जिलों में माले की बहुत मजबूत उपस्थिति है, जहां हमारे लड़ने से नतीजों में फर्क पड़ जाएगा। हम उम्मीद करते हैं कि इस बार माले को बड़े स्तर पर चुनाव लड़ने का मौका मिलेगा।” उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि जब जनाधार वाले जिलों की संख्या बढ़ेगी तो सीटों की संख्या भी बढ़नी चाहिए। 

भट्टाचार्य ने कहा, “बिहार में विधानसभा की 243 सीटें हैं और सभी सीटों पर तैयारी है, लेकिन हमारी खास तौर पर जमीनी तैयारी चल रही है। ” यह पूछे जाने पर कि क्या वह कांग्रेस के बराबर सीटों की उम्मीद करते हैं तो उन्होंने कहा, “सब लोगों को पता है कि बिहार में कांग्रेस की वैसी कोई जमीनी स्थिति नहीं है, लेकिन कांग्रेस एक राष्ट्रीय पार्टी है और देश का मुख्य विपक्षी दल है। कांग्रेस की पहचान अलग धरातल पर है। माले की पहचान बिहार में जमीनी स्तर के संगठन की है। हम चाहते हैं कि महागठबंधन के सभी दलों के मजबूत पक्ष का सदुपयोग किया जाए।” 

मुख्यमंत्री पद के लिए तेजस्वी यादव का नाम अब तक घोषित नहीं किए जाने से जुड़े सवाल पर भट्टाचार्य ने कहा, “यह बिहार के लिए कोई सवाल नहीं है। तेजस्वी यादव पिछली बार भी चेहरा थे। दो दो बार उप मुख्यमंत्री रहे हैं। वह सबसे बड़ी पार्टी राजद के नेता हैं। लोगों के मन में कोई सवाल नहीं है।” 

कुछ लोगों द्वारा नाम की घोषणा किए जाने संबंधी सवाल पर भट्टाचार्य ने कहा, “हमें लगता है कि सबसे पहले महागठबंधन को निर्णायक बहुमत मिले। बाकी मुख्यमंत्री का चयन तो एक औपचारिकता है।” यह पूछे जाने पर कि क्या चुनाव से पहले तेजस्वी का नाम घोषित करना चाहिए तो उन्होंने कहा, “वह (तेजस्वी) लोगों के लिए घोषित हैं, घोषित या अघोषित का कोई फर्क नहीं है… उनका चेहरा लोगों के सामने है, वह महागठबंधन की समन्वय समिति के प्रमुख हैं।” 

उन्होंने यह भी कहा कि इस बात को लेकर असमंजस नहीं है कि चुनाव में महागठबंधन की जीत होने पर मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव होंगे। भट्टाचार्य ने यह भी संभावना जताई कि राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की तरफ से नीतीश कुमार का ही चेहरा होगा क्योंकि “नीतीश भाजपा की मजबूरी हैं।” उन्होंने कहा, “यदि नीतीश मजबूरी नहीं होते तो लोकसभा चुनाव से पहले उन्हें भाजपा द्वारा हाईजैक नहीं किया जाता।” 

उन्होंने दावा किया कि जन सुराज पार्टी के संस्थापक प्रशांत किशोर भाजपा की “बी टीम” की तरह काम कर रहे हैं और उनको लेकर लोगों में अब वह उत्सुकता और उत्साह नहीं है जो पहले था। केंद्र सरकार द्वारा जाति जनगणना कराए जाने के बारे में पूछे जाने पर माले प्रमुख ने कहा कि भाजपा पहले जाति जनगणना के खिलाफ थी, लेकिन बिहार चुनाव को देखते हुए शायद उन्होंने इसकी घोषणा की, हालांकि लोगों को पता है कि भाजपा जो कहती है, वह करती नहीं है। 

उन्होंने कहा कि जाति जनगणना के साथ ही आरक्षण की सीमा बढ़नी चाहिए और निजी क्षेत्र में भी आरक्षण होना चाहिए। वाम दलों के एकीकरण के विचार पर भट्टाचार्य ने कहा कि उनकी राय में यह एक आखिरी कदम हो सकता है, लेकिन फिलहाल यह जरूरी है कि सभी वामपंथी पार्टियों के बीच बेहतर समन्वय हो। 

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