मनोरंजन

Ardeshir Irani Death anniversary:बोलती फिल्मों के जनक आर्देशिर ईरानी, जानिए उनसे जुड़े अद्भुत किस्से – Utkal Mail


मुंबई। भारतीय सिनेमा के पितामह आर्देशिर ईरानी से फिल्मों से जुड़ी कोई भी विधा अछूती नहीं रही। उन्होंने केवल फिल्म निर्माण की प्रतिभा से ही नहीं बल्कि निर्देशन, अभिनय, लेखन, फिल्म वितरण और छायांकन से भी सिने प्रेमियों को अपना दीवाना बनाया। आर्देशिर ईरानी का जन्म 05 दिसंबर 1886 महाराष्ट्र के पुणे में में हुआ था। आर्देशिर ईरानी ने प्रारंभिक शिक्षा के बाद मुंबई के जे.जे.आर्ट स्कूल में कला का अध्ययन किया। इसके बाद वह बतौर अध्यापक काम करने लगे। बाद में उन्होंने केरोसीन इंस्पेक्टर के रूप में भी कुछ दिन काम किया।

 यह नौकरी छोड़कर वह पिता के वाद्य यंत्रों के व्यवसाय में हाथ बंटाने लगे।इस सिलेसिले में उनका संपर्क कई विदेशी कंपनियों से हुआ और जल्द ही वह विदेशी फिल्मों का आयात करके उन्हें प्रदर्शित करने लगे। इसी दौरान उनके काम से खुश होकर अमेरिकी यूनीवर्सल कंपनी ने उन्हें पश्चिम भारत में अपना वितरक नियुक्त किया। कुछ समय के बाद ईरानी ने महसूस किया कि फिल्मी दुनिया में जगह बनाने के लिये खुद का स्टूडियो होना चाहिये। वर्ष 1914 में उन्होंने अब्दुल अली और युसूफ अली के सहयोग से मैजेस्टिक और अलेक्जेंडर थियेटर खरीदे। 

वर्ष 1920 में उन्होंने अपनी पहली मूक फिल्म’ नल दमयंती’ का निर्माण किया। इसी दौरान उनकी मुलाकात दादा साहब फाल्के की कंपनी ‘हिंदुस्तान फिल्म्स’ के पूर्व प्रबंधक भोगी लाल दवे से हुयी। उन्होंने फिर उनके साथ मिलकर ‘स्टार फिल्म्स’ की स्थापना की।स्टार फिल्म्स के बैनर तले सबसे पहले उन्होंने फिल्म ‘वीर अभिमन्यु’ का निर्माण किया। फिल्म के निर्माण में उस जमाने में लगभग 10000 रुपये खर्च हुये। स्टार फिल्म्स के बैनर तले 17 फिल्मों का निर्माण करने के बाद आर्देशिर ईरानी और भोगीलाल दवे ने एक साथ काम करना बंद कर दिया। 

वर्ष 1924 में आर्देशिर ईरानी ने मैजेस्टिक फिल्मस की स्थापना की। मैजेस्टिक फिल्मस के बैनर तले उन्होंने बी.पी.मिश्रा और नवल गांधी को बतौर निर्देशक काम करने का मौका दिया। स्टार फिल्म्स के रहते हुये जिस तरह उन्होंने मैजेस्टिक फिल्म्स की स्थापना की और दोनों का कार्य विभाजन किया, उससे यह स्पष्ट हो गया कि दोनों बैनरों का निर्माण उन्होंने अपनी कंपनी की संख्या बढाने के लिये नहीं किया था बल्कि किसी खास उदेश्य से किया था।स्टार फिल्म्स के बैनर तले जहां उन्होंने पौराणिक और धार्मिक फिल्मों का निर्माण किया वही मैजेस्टिक फिल्म्स के बैनर तले उन्होंने हॉलीवुड की शैली में ऐतिहासिक फिल्मों का निर्माण किया। 

मैजेस्टिक फिल्म्स के बैनर तले उन्होंने 15 फिल्मों का निर्माण किया लेकिन बाद में कुछ कारणों से उन्होंने यह कंपनी भी बंद करनी पडी। वर्ष 1925 में आर्देशिर ईरानी ने इंपीरियल फिल्म्स की स्थापना की और इसी के बैनर तले उन्होंने पहली बोलती फिल्म ‘आलम आरा’ का निर्माण किया। फिल्म के निर्माण में लगभग 40000 रुपये खर्च हुये जो उन दिनों काफी बड़ी रकम समझी जाती थी। फिल्म की जबर्दस्त सफलता के बाद उन्होंंने इम्पीरियल फिल्मस के बैनर तले कई फिल्मों का निर्माण किया।14 मार्च 1931 में मुंबई के मैजिस्टिक सिनेमा हॉल के बाहर दर्शकों की काफी भीड जमा थी। टिकट खिड़की पर दर्शक टिकट लेने के लिये उमड़ रहे थे। चार आने के टिकट के लिये दर्शक चार- पांच रुपये देने के लिये तैयार थे। 

इसी तरह का नजारा लगभग 18 वर्ष पहले दादा साहब फाल्के की फिल्म ‘राजा हरिश्चंद्र’ के प्रीमियर के दौरान भी हुआ था। लेकिन आज बात ही कुछ और थी। सिने दर्शक पहली बार रूपहले पर्दे पर सिने कलाकारों को ‘बोलते-सुनते’ देखने वाले थे। सिनेमा हॉल के गेट पर एक शख्स दर्शकों का स्वागत करके उन्हें अंदर जाकर सिनेमा देखने का निमंत्रण दे रहे थे। आर्देशिर ईरानी केवल इस बात पर खुश थे कि उन्होंने भारत की पहली बोलती फिल्म ‘आलम आरा’ का निर्माण किया है लेकिन तब उन्हें भी पता नहीं था कि उन्होंने एक इतिहास रच दिया है और सिने प्रेमी उन्हें सदा के लिये बोलती फिल्म के जन्मदाता के रूप में याद करते रहेंगे।फिल्म आलम आरा की रजत जंयती पर फिल्म जगत में जब उन्हें पहली बोलती फिल्म के जन्मदाता के रूप में सम्मानित किया गया तो उन्होंने कहा मैं नहीं समझता कि पहली भारतीय बोलती फिल्म के लिये मुझे सम्मानित करने की जरूरत है, मैंने वही किया जो मुझे अपने राष्ट्र के लिये करना चाहिये था।

मनोरंजन-आर्देशिर बोलती फिल्में तीन अंतिम मुंबई आर्देशिर ईरानी सदा कुछ नया करने चाहते थे। इसी के तहत उन्होंने फिल्म ‘कालिदास’ का निर्माण किया। फिल्म में दिलचस्प बात यह थी कि फिल्म के संवाद तमिल भाषा में रखे गये थे जबकि फिल्म के गीत तेलगु में थे। हालांकि इसके लिये उनकी काफी आलोचना हुयी लेकिन आर्देशिर ईरानी का मानना था कि तेलुगु भाषा संस्कृत के काफी नजदीक है और गीतों में यदि तेलगु का इस्तेमाल किया जाये तो कालिदास के भाव को सही तरीके से अभिव्यक्त किया जा सकता है। फिल्म के प्रदर्शन के बाद उनका यह प्रयोग सफल रहा और फिल्म टिकट खिड़की पर सुपरहिट साबित हुयी। वर्ष 1934 में आर्देशिर ईरानी ने भारत की पहली अंग्रेजी फिल्म ‘नूरजहां’ का निर्माण किया।

 वर्ष 1937 एक बार फिर से उनके सिने कैरियर का अहम वर्ष साबित हुआ जब उन्होंने भारत की पहली रंगीन फिल्म ‘किसान कन्या’ का निर्माण किया। मोती गिडवानी निर्देशित इस फिल्म की कहानी लिखी थी एस. जियाउद्दीन ने जबकि संवाद और पटकथा लेखक थे उर्दू के प्रसिद्ध कहानीकार सआदत हसन मंटो।वर्ष 1938 में आर्देशिर ईरानी ने इंडियन मोशन फिल्म्स प्रोडयूसर एसोसिएशन की स्थापना की और वह उसके अध्यक्ष बने। इस बीच ब्रिटिश सरकार ने फिल्मों में उनके महत्वपूर्ण योगदान को देखते हुये उन्हें ..खान बहादुर.. के खिताब से सम्मानित किया। 

वर्ष 1945 में प्रदर्शित फिल्म ‘पुजारी’ उनके सिने कैरियर की अंतिम फिल्म थी। आर्देशिर ईरानी ने अपने तीन दशक से भी ज्यादा लंबे सिने कैरियर में लगभग 250 फिल्मों का निर्माण किया जिसमें 150 फिल्में मूक थी। हिन्दी के अलावा उन्होंने गुजराती, मराठी, तमिल, तेलगु, वर्मी, फारसी तथा अंग्रेजी फिल्म का भी निर्माण किया।अपने फिल्म निर्माण और निर्देशन की कला से लगभग तीन दशक तक सिने प्रेमियों का अपना दीवाना बनाये रखने वाले यह महान फिल्मकार 14 अक्टूबर 1969 को इस दुनिया को अलविदा कह गये।

ये भी पढ़ें:- PM मोदी का लिखा गाना ‘गरबो’ हुआ रिलीज, ध्वनि भानुशाली ने दी आवाज…देखिए वीडियो


utkalmailtv

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button