मनोरंजन

रेड और कागज के मुख्यमंत्री आरसी पाठक आये अमृत विचार के दफ्तर – Utkal Mail

शबाहत हुसैन विजेता, लखनऊ, अमृत विचार। फिल्म रेड के मुख्यमंत्री याद हैं आपको। हां-हां वही जो फिल्म कागज में भी मुख्यमंत्री थे। घर वालों ने उनका नाम रमेश चन्द्र पाठक रखा। पढ़ाया-लिखाया। अच्छी सरकारी नौकरी के लायक बनाया। उन्होंने पूरे मन के साथ नौकरी की लेकिन कला और संस्कृति उनके खून में थी इसलिए वह जिधर भी गए यह कला उनके पीछे-पीछे चलती हुई दिखाई दी। ओरछा में फिल्म की शूटिंग खत्म कर वह गुरुवार को लखनऊ पहुंचे तो कानपुर जाने से पहले अमृत विचार के दफ्तर आये।

रमेश चन्द्र पाठक को फ़िल्मी दुनिया के लोग आरसी पाठक के नाम से पहचानते हैं। 52 फ़िल्में उनके खाते में हैं। उनके अभिनय पर बालीवुड फ़िदा है लेकिन उन्होंने कभी कानपुर छोड़ने की बात नहीं सोची क्योंकि वह मुम्बई के कबूतरखाने नुमा घर में जिन्दगी नहीं गुजार सकते।

उनके पिता फाग और चैती के शानदार कलाकार थे। अपनी कला के साथ वह बैंकाक गए और वहां उन्होंने खूब नाम कमाया। पिता की उंगली पकड़कर उन्होंने चलना भी सीखा और गाना भी सीखा। सरस्वती ने उन्हें लिखने और गाने की कला भी दे दी। थियेटर के साथ उन्हें बचपन से ही मोहब्बत हो गई। थियेटर में उन्होंने अपनी सारी कलाओं का भरपूर प्रदर्शन किया और लोगों के दिलों पर छा गए। उन्हें टेलीविजन ने ऑफर दिया तो उन्होंने सावधान इंडिया और तहकीकात के कई एपीसोड किये लेकिन वहां उन्हें आनंद नहीं आया।

2005 में उन्हें फिल्म आन्दोलन में गांव के मुखिया का रोल मिला। इस रोल ने उन्हें भरपूर पहचान दी लेकिन उन्होंने यह बात हमेशा अपने जेहन में रखी कि थियेटर ही बालीवुड की जननी है। यही वजह है कि सामाजिक समस्याओं पर वह खुद नाटक लिखते हैं और उसमें अभिनय भी करते हैं। नयी पीढ़ी को पूरी शिद्दत के साथ सिखाते भी हैं।

फिल्म कागज में उन्होंने पहली बार मुख्यमंत्री की भूमिका निभाई। यह फिल्म उस प्रसिद्ध घटना पर आधारित है जिसमें एक जीवित व्यक्ति को मृत घोषित कर दिया जाता है और वह पूरी जिन्दगी खुद को जिन्दा साबित करने में ही लगा रहता है। यह फिल्म लखनऊ, बाराबंकी और सीतापुर में शूट की गई। इस फिल्म में उनके साथ सतीश कौशिक भी थे।

अभी हाल में उन्होंने ओरछा में फिल्म केजीएन शूट की है। इस फिल्म में वह हकीम सुलेमान की भूमिका निभा रहे हैं। वह बताते हैं कि हर साल 5 – 6 फ़िल्में करता हूं। मैं सुबह 4 बजे से रात 10 बजे तक खटने वाला नहीं हूं लेकिन जो करता हूं वह पूरे मन से करता हूं और समाज को कुछ देने की कोशिश करता हूं। मैं लेखन करता हूं, शायरी करता हूं, अभिनय करता हूं यह सिर्फ सरस्वती की कृपा है।

वह कहते हैं कि पहले के दौर में नाट्यशास्त्र ही मनोरंजन का साधन था। राजा – महाराजा के दरबार में भी स्वांग हुआ करता था। वक्त बदला तो यही नाटयशास्त्र रुपहले परदे का हिस्सा बन गया। मैं भी समय के साथ थियेटर से फिल्मों के रास्ते पर चला गया लेकिन थियेटर को न छोड़ा है न कभी छोड़ने वाला हूं।

यह भी पढ़ेः अल्लू अर्जुन की फिल्म ‘पुष्पा 2 द रूल’ ने बॉक्स ऑफिस पर मचाया तूफान, कमाए 175 करोड़ रुपये


utkalmailtv

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button