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Deewaar: फिल्म दीवार के पूरे हुए 50 साल, जावेद अख्तर और सलीम खान ने पुरानी यादों को किया ताजा – Utkal Mail


नई दिल्ली, अमृत विचारः गीतकार-पटकथा लेखक जावेद अख्तर और सलीम खान की फिल्म दीवार को 50 साल पूरे हो गए है। अपनी ब्लॉकबस्टर फिल्म ‘दीवार’ को याद करते हुए जावेद अख्तर ने कहा कि समय कितनी तेजी से और चुपचाप गुजर जाता है। एक दौर में सलीम खान और जावेद अख्तर की जोड़ी ‘सलीम-जावेद’ के नाम से जानी जाती थी। इस जोड़ी ने हिंदी सिनेमा को कुछ सबसे बड़ी हिट फिल्में दीं, लेकिन अमिताभ बच्चन और शशि कपूर अभिनीत तथा यश चोपड़ा निर्देशित ‘दीवार’ का एक विशेष स्थान है। उसी वर्ष अगस्त में इस जोड़ी ने एक और ब्लॉकबस्टर फिल्म ‘शोले’ दी। 

जावेद अख्तर ने अपने 80वां जन्मदिन पर ‘एक्स’ पर लिखा कि दीवार 21 जनवरी 1975 को रिलीज हुई थी। ठीक पचास साल पहले। समय कितनी तेजी से और चुपचाप गुजर जाता है। यह हमेशा होता है, लेकिन यह एक आश्चर्य है। निरूपा रॉय, नीतू सिंह और परवीन बॉबी अभिनीत यह फिल्म दशकों से लोगों की चेतना में बनी हुई है और इसके संवाद ‘‘मेरे पास माँ है’’ और ‘‘दावर साहब, मैं आज भी फेंके हुए पैसे नहीं उठाता’’ आज भी अक्सर याद किए जाते हैं। 

‘दीवार’ की कहानी मुंबई की झुग्गियों में रहने वाले दो गरीब भाइयों के इर्द-गिर्द घूमती है। जब वे बड़े होते हैं, तो बड़ा भाई विजय (बच्चन) अपराध की दुनिया में चला जाता है जबकि छोटा भाई रवि (कपूर) एक ईमानदार पुलिस अधिकारी बन जाता है। पिछले साल रिलीज़ हुई प्राइम वीडियो डॉक्यूमेंट्री सीरीज़ ‘एंग्री यंग मैन’ में अख्तर ने बताया कि फ़िल्म का क्लाइमेक्स क्या होना चाहिए यह सोचने में उन्हें काफ़ी मशक्कत करनी पड़ी। अख्तर ने कहा, ‘‘लोग कहते हैं कि ‘दीवार’ की पटकथा एकदम सही है। हमने इसे एक छोटी सी कहानी से 18 दिनों में विस्तृत रूप में लिखा। फिर मैंने लगभग 20 दिनों में संवाद लिखे।’’ 

सलीम खान ने कहा, ‘‘लेकिन अभी भी ‘अंत’ पर काम नहीं कर पाए थे। एक बार स्क्रिप्ट पूरी हो जाने के बाद, हमें पता चल गया कि हम क्लाइमेक्स तक नहीं पहुँच पाए हैं। इसलिए जावेद और मैंने इसे अपने बांद्रा वाले घर पर बैठकर पूरा किया। फिर हम सीधे यश चोपड़ा के घर गए और इसे सुनाया।’’ उन्होंने डॉक्यूमेंट्री सीरीज में याद किया, ‘‘लगभग पांच मिनट तक पूरी तरह से सन्नाटा छाया रहा।’’ 

सलीम-जावेद ने 1973 की ‘जंजीर’ में अमिताभ बच्चन के विजय के साथ ‘एंग्री यंग मैन’ की कहानी भी लिखी थी। फिल्म इतिहासकारों और विश्लेषकों का कहना है कि यह जोड़ी देश की नब्ज पर अपनी उंगली रखती थी और ऐसी फिल्में बनाती थी जो लोगों में व्याप्त गहरी निराशा को दर्शाती थीं। बहरहाल, अख्तर ने डॉक्यूमेंट्री में कहा कि ‘दीवार’ की पटकथा लिखते समय वे इस सब से अनजान थे। उन्होंने कहा ‘‘और न ही हमने सोचा कि हमारी कहानियों की सामाजिक-राजनीतिक प्रासंगिकता है। और यह अच्छा है। मुझे बहुत खुशी है कि हम इसके बारे में मासूम थे। क्योंकि हम उसी समाज, उसी दुनिया का हिस्सा थे और हम एक ही हवा में सांस ले रहे थे।’’ उन्होंने ‘एंग्री यंग मैन’ में कहा ‘‘अनजाने में, हम बाकी लोगों के साथ तालमेल बिठा रहे थे। लेकिन क्या यह वास्तव में संयोग है कि 1973 में, हमने एक सतर्क व्यक्ति (‘जंजीर’ से विजय) बनाया और 1975 में, भारत को आपातकाल का सामना करना पड़ा? क्या उनमें संबंध है या नहीं?’’ डॉक्यूमेंट्री सीरीज में, अमिताभ बच्चन ने ‘दीवार’ की प्रीमियर नाइट में मंदिर के उस दृश्य का वर्णन किया, जिसमें उनका किरदार विजय बड़ा होकर नास्तिक बन जाता है, लेकिन अपनी बीमार माँ के लिए भगवान को उलाहना देते हुए उनसे प्रार्थना करता है। अमिताभ बच्चन ने कहा, ‘‘मुझे ‘दीवार’ का प्रीमियर याद है दर्शक थोड़ा हंसे थे, यह बहुत अप्रत्याशित था और उन्हें लगा कि यह किसी तरह का मजाक है। लेकिन उसके कुछ सेकंड बाद ही, वे बस स्तब्ध रह गए।’’ कई सालों तक, ‘दीवार’ की पटकथा को पुणे के ‘फिल्म और टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया’ में एक बेहतरीन पटकथा के रूप में पढ़ाया जाता था। 1976 में, सलीम-जावेद ने ‘दीवार’ के लिए लेखन श्रेणियों – सर्वश्रेष्ठ कहानी, सर्वश्रेष्ठ संवाद और सर्वश्रेष्ठ पटकथा – में सभी फिल्मफेयर पुरस्कार जीते थे। 

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