अयोध्या: सावन झूला मेला के लिए तैयारियां हुई पूरी, जानिए क्या है पौराणिक कथा – Utkal Mail

अयोध्या। रामनगरी का पौराणिक व पारम्परिक सावन झूला मेला रविवार से मणिपर्वत पर शुरू हो जायेगा जो रक्षाबंधन सावन पूर्णिमा तक चलेगा। इसको लेकर विद्याकुंड स्थित मणिपर्वत पर साफ सफाई के साथ बैरिकेडिंग सहित सभी प्रशासनिक तैयारियां पूर्ण कर ली गई हैं।
सावन शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि से यह आयोजन शुरू होता है झूलनोत्सव में भाग लेने के लिए लाखों श्रद्धालु आते हैं और झूले में विराजमान प्रभु श्रीराम और मां सीता के विग्रह स्वरूप को झुलाते है। माना जाता है कि सीताराम को झूला झुलाते समय भक्त जो मनोकामना प्रभु के श्रीचरणों में भक्तिभाव से समर्पित करते हैं वह निश्चित रूप से पूरी हो जाती हैं।
झूला मेला में मान्यता के अनुसार अयोध्या के अधिकांश मंदिरों से प्रभु श्रीराम और मां जानकी का विग्रह स्वरूप पालकी में रखकर गाजे बाजे शंख नगाड़े समारोह पूर्वक जयकारों के साथ रामनगरी के विभिन्न मार्गों पर भ्रमण करते हुए मणिपर्वत पर पहुंचते हैं वहां पर पेड़ो पर पड़े झूलो पर सीताराम जी को गीत गा कर झूला झुलाते है। शाम होते ही फिर सीताराम के विग्रह स्वरूप को पालकी में बिठाकर मंदिर लाते हैं और मंदिर में पड़े झूले पर भगवान के विग्रह स्वरूप को झुलाते है।
12 दिवसीय झूलनोत्सव की अनुपम छटा निहारने भक्त बड़ी दूर से आते हैं। रामनगरी के मंदिरों में भजन कीर्तन कजरी गीत संपूर्ण वातावरण को रसमय भक्तिमय बना देते हैं। अयोध्या के कुछ मंदिरों में सावन झूला पूरे माह भर पड़ा रहता है जिसमें कनक बिहारी सरकार और मां जानकी को भक्त झूला झुला कर पुण्य लाभ अर्जित करते हैं।उपासना भक्ति की बड़ी पीठ रंगमहल पीठ के पीठाधीश्वर महंत राम शरण दास बताते हैं कि झूला मेला और मणिपर्वत का पौराणिक धर्म ग्रंथों में पूरा बखान है।
राम शरण दास बताते हैं कि हमारे रंगमहल में पूरा सावन माह झूला महोत्सव से सराबोर रहता है। भक्त कजरी गीत गा कर प्रभु और किशोरी जी को झूला झुला कर अपने जीवन को धन्य कर लेते हैं। रंगमहल के महंत राम शरण दास जी बताते हैं कि मां जानकी की विदाई के समय एक मणि उनके साथ जनकपुर चली गई। माहराज जनक को जब इसकी जानकारी हुई तो उन्होंने मणि के बारे में पूछा तो पता चला कि जहां सभी आभूषण रखे जाते हैं वहीं मणि को रख दिया। जब महाराज जनक मणि को खोजने का प्रयास करते हैं तो वैसी मणियां अनेकों रहती हैं।
पुत्री के धन को उपयोग में नहीं लाते इस भावना में आकर महराज जनक सभी मणियों को अयोध्या भेज देते हैं। अयोध्या का खजाना पहले से ही परिपूर्ण था इस कारण महाराज दशरथ उसको विद्याकुंड के पास सुरक्षित रखने का आदेश देते हैं। वहीं मणियों के ढेर कारण मणिपर्वत के रुप में परिवर्तित हो जाता है। क्योंकि यह मणियां सावन शुक्ल पक्ष तृतीया को आई थी तभी से कजरी तीज का उत्सव मनाया जाने लगा और मणिपर्वत पर झूलनोत्सव होने लगा।