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बिहार में जातिगत सर्वेक्षण पर तबतक रोक नहीं, जब तक प्रथम दृष्टया मामले का ठोस आधार नहीं: SC – Utkal Mail


नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने बिहार सरकार को जातिगत सर्वेक्षण की अनुमति देने के पटना उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ताओं से सोमवार को कहा कि वह इस प्रक्रिया पर तबतक रोक नहीं लगाएगा जबतक कि वे (याचिकाकर्ता) इसके खिलाफ प्रथम दृष्टया ठोस आधार नहीं देते। शीर्ष अदालत ने केंद्र का प्रतिनिधित्व कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता को इस मुद्दे पर सात दिनों के भीतर अपना जवाब दाखिल करने की भी अनुमति दी, क्योंकि उन्होंने कहा था कि सर्वेक्षण के कुछ परिणाम हो सकते हैं। 

मेहता ने कहा, “हम इस तरफ या उस तरफ नहीं हैं, लेकिन इस कवायद के कुछ परिणाम हो सकते हैं और इसलिए हम अपना जवाब दाखिल करना चाहेंगे।” उन्होंने विवादास्पद कवायद के संभावित परिणामों के बारे में विस्तार से नहीं बताया। उच्च न्यायालय के एक अगस्त के फैसले को चुनौती देने वाले विभिन्न गैर-सरकारी संगठनों और व्यक्तियों द्वारा दायर याचिकाओं की सुनवाई कर रही न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति एस. वी. एन. भट्टी की पीठ ने मेहता के अनुरोध पर कार्यवाही स्थगित कर दी। 

याचिकाकर्ताओं में से एक की ओर से पेश वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने अदालत से राज्य सरकार को आंकड़े प्रकाशित करने से रोकने का निर्देश देने की मांग की। पीठ ने कहा, “आप समझिए, दो चीजें हैं। एक आंकड़ों का संग्रह है, वह कवायद जो समाप्त हो गई है, और दूसरा सर्वेक्षण के दौरान एकत्र आंकड़ों का विश्लेषण है। दूसरा भाग, अधिक कठिन एवं समस्याग्रस्त है। जब तक आप (याचिकाकर्ता) प्रथम दृष्टया मामले का आधार बनाने में सक्षम नहीं हो जाते, हम किसी भी चीज पर रोक नहीं लगाने वाले।” 

इसमें कहा गया है कि बिहार सरकार ने पिछली सुनवाई के दौरान आश्वासन दिया था कि वह डेटा प्रकाशित नहीं करने जा रही है। जब रोहतगी ने बिहार सरकार को रोक लगाने का आदेश देने पर जोर दिया, तो पीठ ने कहा, “राज्य के पक्ष में पहले ही फैसला आ चुका है। यह इतना आसान नहीं है। जबतक प्रथम दृष्टया मामला नहीं बनता, हम इस पर रोक नहीं लगाने वाले।” बिहार सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ वकील श्याम दीवान ने दलील दी कि आदेश में कुछ भी दर्ज नहीं किया जाना चाहिए और राज्य पर कोई रोक नहीं होनी चाहिए। 

पीठ ने कहा, “मामले को आगे की दलीलें सुनने के लिए आज सूचीबद्ध किया गया था। हम शुक्रवार को वरिष्ठ अधिवक्ता सी. एस. वैद्यनाथन को लगभग 20 मिनट तक सुन चुके हैं।” पीठ ने सॉलिसिटर जनरल मेहता द्वारा केंद्र का जवाब दाखिल करने के लिए समय मांगने के बाद, मामले को आगे की सुनवाई के लिए 28 अगस्त को सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया। 

शीर्ष अदालत ने 18 अगस्त को पूछा था कि अगर किसी व्यक्ति ने जातिगत सर्वेक्षण के दौरान जाति या उपजाति का विवरण प्रदान किया तो इसमें क्या नुकसान है, जबकि किसी व्यक्ति का आंकड़ा राज्य द्वारा प्रकाशित नहीं किया जा रहा था। सर्वेक्षण को चुनौती देने वाले एनजीओ ‘यूथ फॉर इक्वेलिटी’ की ओर से पेश हुए वैद्यनाथन ने कहा था कि यह कवायद लोगों की निजता के अधिकार का उल्लंघन है। 

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