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बच्चों को सशक्त बनाने से उनका शोषण रोकने में कैसे मदद मिल सकती है – Utkal Mail


मेबलर्न। बच्चों को उत्पीड़न से सुरक्षित रखने के लिए उन्हें केवल ‘अजनबियों से खतरे’ के बारे में बताना ही काफी नहीं है, बल्कि शारीरिक सुरक्षा और सशक्तीकरण की जानकारी देना भी जरूरी है। जो लोग ऑस्ट्रेलिया में 1970, 80 और 90 के दशक में पले-बढ़े हैं, उन्हें ‘अजनबियों से खतरे’ (स्ट्रेंजर डेंजर) के बारे में चौकन्ना किए जाने की सीख याद होंगी। माता-पिता, शिक्षकों और यहां तक कि मीडिया ने बच्चों के अपहरण या उनसे दुर्व्यवहार की आशंका को कम करने के लिए अपरिचित वयस्कों से बात करने के बारे में बच्चों को चेतावनी देने के लिए ‘स्ट्रेंजर डेंजर’ (अजनबियों से खतरे) शब्द का उपयोग किया। लेकिन बाल संरक्षण विशेषज्ञ अब अलग ही दृष्टिकोण प्रस्तुत कर रहे हैं कि ‘अजनबी’ बाल शोषण के मुख्य अपराधी नहीं हैं। आजकल अनुसंधानकर्ता माता-पिता को सुझाते हैं कि वे बच्चों से शारीरिक सुरक्षा और सशक्तीकरण के बारे में बात करें।

‘स्ट्रेंजर डेंजर’ शब्द कहां से आया?
बच्चों का अपहरण करने वाले और उनका उत्पीड़न करने वाले अज्ञात पुरुषों के बारे में मीडिया में आईं खबरों से यह शब्द प्रचारित प्रसारित हुआ। लेकिन यह इस बात को मानने के डर से भी पैदा होता है कि हमारा कोई अपना भी शोषण कर सकता है। बाल यौन शोषण पर संस्थागत प्रतिक्रियाओं के संबंध में रॉयल कमीशन की 2017 की रिपोर्ट में सत्ता के पदों पर बैठे लोगों द्वारा बच्चों और किशोरों के साथ दुर्व्यवहार का खुलासा किया गया है और इस कारण हम संस्थानों में बाल सुरक्षा की संस्कृति में बदलाव की आवश्यकता के बारे में अधिक समझ पाते हैं। रॉयल कमीशन ने जान-पहचान वाले और विश्वस्त लोगों द्वारा ही शोषण होने की बात को उजागर किया। इसमें कहा गया कि 15 साल की उम्र से पहले यौन उत्पीड़न का शिकार हुए बच्चों में से करीब 79 प्रतिशत के साथ यह कुकृत्य किसी रिश्तेदार, मित्र, जान-पहचान वाले या पड़ोसी ने किया, वहीं 11 प्रतिशत बच्चों का शोषण किसी अजनबी ने किया। शोषण का शिकार हुए शेष बच्चों में इन घटनाओं को शिक्षक, धार्मिक नेताओं, डॉक्टर आदि किसी विश्वस्त व्यक्ति ने अंजाम दिया। 

‘ट्रिकी पीपुल’ की अवधारणा क्या है?
यह एक ऐसी अवधारण है जिसमें लोग किसी तरह की चालबाजी, चालाकी से बच्चों को लुभाते हैं। शिक्षण क्षेत्र की कंपनी ‘सेफली ऐवर आफ्टर’ के संस्थापक पैटी फिट्जराल्ड ने यह अवधारणा दी थी। अनुसंधानकर्ता अब ‘ट्रिकी’ लोगों की पहचान करने की कोशिश के बजाय उस माहौल या परिस्थिति पर ध्यान देने पर जोर दे रहे हैं जहां बच्चों को खतरा हो सकता है।

 उपाय क्या है?
उत्पीड़न और शोषण के हालात को कम करने के साथ बच्चों से बात करना, उन्हें असहज होने, आपबीती नहीं बताने और चुप रहने से उबरने के बारे में बात करना भी जरूरी है। अभिभावकों, माता-पिता और शिक्षकों को बच्चों से शारीरिक सुरक्षा और सशक्तीकरण के बारे में बात करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।

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