विदेश

कंगाल पाकिस्तान की अवाम के हुए बुरे हाल, आटा पहुंच से बाहर

इस्लामाबाद
पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति का आम आदमी के जीवन पर व्यापक नकारात्मक प्रभाव पड़ा है, जो सबसे खराब स्थिति का सामना कर रहा है। सरकार के बढ़े हुए कर, मुद्रास्फीति और देश में कई उद्योगों के बंद होने के कारण बड़े पैमाने पर बेरोजगारी भी है। उधर अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ), कर सुधारों को लेकर पाकिस्तान के लिए अपनी शर्तों पर अडिग है। सरकार गैस, बिजली, पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतों में वृद्धि कर सुधार कार्यान्वयन का खामियाजा भुगतने के लिए पहले से ही जनता की ओर देख रही है।

 

यह ऐसे समय में किया जा रहा है जब देश का औद्योगिक क्षेत्र आयात और लीज के्रडिट (एलसी) के बंद होने के कारण बिगड़ रहा है, जिससे कई बहुराष्ट्रीय और राष्ट्रीय निर्माताओं को देश में अपने संयंत्र बंद करने और हजारों कर्मचारियों की छंटनी करने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। इस वक्त पाकिस्तान में महंगाई 27.5 फीसदी के आसपास चल रही है और अगर इसे विभिन्न क्षेत्रों के बंद होने के रूप में देखा जाए, जिससे गरीबी और भुखमरी में वृद्धि हो रही है, तो यह महसूस करना मुश्किल नहीं होगा कि एक आम आदमी का जीवन लगभग असंभव सा हो गया है।

कंपनियां कर रहीं छटनी
एक पूर्व कर्मचारी ने कहा, ‘मैं पाकिस्तान में कम से कम 16,000 कर्मचारियों वाली एक MNC (बहुराष्ट्रीय कंपनी) का स्थायी कर्मचारी हुआ करता था, लेकिन सरकार की ओर से आयात पर प्रतिबंध के कारण, कंपनी को अपने परिचालन को कम करना पड़ा और कम से कम 30 प्रतिशत की छंटनी करनी पड़ी।’ उसने बताया, ‘‘जब आप स्थिर एमएनसी नौकरी से बेरोजगार हो जाते हैं, वह भी ऐसे समय में जब पीने का पानी भी आम आदमी की पहुंच से बाहर होता जा रहा है, जब ईंधन से लेकर बुनियादी खाने-पीने की चीजें तक सब कुछ महंगा हो गया है, जब एक सामान्य घर का मासिक खर्च कम से कम 40 से 50 फीसदी बढ़ गया है, जहां बाजार बंद होने के कारण रोजगार नहीं है… तो आप क्या करें? आप कैसे जीवित रहते हैं?’’

आटा महंगा, जान सस्ती
पाकिस्तान में, यह टैगलाइन आम हो गई है – पाकिस्तान में आटा महंगा है और जान सस्ती, जिसका अर्थ है पाकिस्तान में मानव जीवन आटे से सस्ता हो गया है। यह निश्चित रूप से जनता के जीवन पर महंगाई, नए करों और मूल्य वृद्धि के भयानक और विनाशकारी प्रभाव को उजागर करता है, जो न केवल बढ़ती महंगाई से पीड़ित हैं बल्कि बेरोजगारी, गरीबी और भुखमरी के कारण जीवित रहने की उम्मीद भी खो रहे हैं।

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