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ओलंपिक पदक ने मेरे जीवन को नया मोड़ दिया, लेकिन अब मैं इसे पीछे छोड़ चुका हूँ: पहलवान अमन सहरावत – Utkal Mail

लखनऊ। पेरिस ओलंपिक में कांस्य पदक जीतकर पहलवान अमन सहरावत ने न केवल देश का नाम रोशन किया, बल्कि अपने जीवन की कई मुश्किलों को भी पीछे छोड़ दिया। हालांकि, इस युवा पहलवान का कहना है कि वह इस उपलब्धि को भुलाकर अब भविष्य के बड़े लक्ष्यों की ओर बढ़ रहे हैं, क्योंकि अतीत की सफलताओं पर रुकने से उनके सपने पूरे नहीं होंगे।

बिरोहर में जन्मे अमन का जीवन आसान नहीं रहा। छोटी उम्र में माता-पिता को खो देने के बाद उनके चाचा ने उनका पूरा साथ दिया, लेकिन पारिवारिक जिम्मेदारियों का बोझ हमेशा उनके कंधों पर रहा। पिछले साल पेरिस ओलंपिक में कांस्य पदक जीतने के बाद उनकी जिंदगी में बड़ा बदलाव आया। इस सफलता ने उन्हें पहचान और आर्थिक स्थिरता दी। 

57 किग्रा वर्ग में विश्व चैंपियनशिप के चयन ट्रायल जीतने के बाद अमन ने पीटीआई से बातचीत में कहा, “ओलंपिक पदक ने मेरे जीवन को पूरी तरह बदल दिया। पहले मुझे कोई नहीं जानता था, मेरे प्रदर्शन पर ध्यान नहीं जाता था। लेकिन पेरिस की जीत के बाद लोग मुझे सम्मान देने लगे। मुझे लगा कि मैंने देश के लिए कुछ हासिल किया है और मेरी 10-15 साल की मेहनत रंग लाई।”

उन्होंने आगे कहा, “यह पदक मेरे लिए ईश्वर का आशीर्वाद है। मुझे जीत की उम्मीद नहीं थी, क्योंकि महिला पहलवानों से ज्यादा अपेक्षाएं थीं। यह मेरे लिए भगवान का तोहफा है।” अमन ने बताया कि इस सफलता ने उन्हें प्रेरणा दी है और अब लोग उनसे स्वर्ण पदक की उम्मीद कर रहे हैं। उन्होंने कहा, “मैं अपने कांस्य पदक को भूल चुका हूँ। मैं इससे संतुष्ट नहीं हो सकता। अब मेरा लक्ष्य स्वर्ण पदक जीतना है।”

अमन ने बताया कि इस सफलता ने उनकी जिंदगी को आर्थिक रूप से भी आसान बनाया है। “पहले मुझे अपनी छोटी बहन की पढ़ाई और शादी की चिंता थी। अब मैं बिना किसी आर्थिक दबाव के अपने अभ्यास पर ध्यान दे सकता हूँ।” उन्होंने कहा कि उनके चाचा ने हमेशा उनका साथ दिया, लेकिन एक बड़े भाई की जिम्मेदारी को वह अच्छी तरह समझते हैं।

पेरिस ओलंपिक के बाद अमन ने केवल दो टूर्नामेंट में हिस्सा लिया और सीनियर एशियाई चैंपियनशिप में भाग नहीं ले पाए। उन्होंने बताया, “मैंने सोचा था कि ओलंपिक के बाद विदेश में अभ्यास करूंगा, लेकिन चीजें हमेशा योजना के अनुसार नहीं होतीं। मैं चोटिल भी हो गया था।” 

अमन ने यह भी स्वीकार किया कि पदक जीतने के बाद हार का डर उन्हें सताने लगा था। “मैं सोचता था कि अगर मैं हार गया, तो लोग कहेंगे कि सफलता ने मुझे बिगाड़ दिया। लेकिन मेरे कोचों ने मुझे समझाया कि मैं एक अलग स्तर पर हूँ और मैट पर उतरकर अपना सर्वश्रेष्ठ देना होगा।” 

अब अमन का पूरा ध्यान भविष्य की तैयारियों पर है, ताकि वह अपने स्वर्ण पदक के सपने को साकार कर सकें।

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