नाले के पानी पर आश्रित है बिरहोर
बोकारो – यूं तो झारखंड की पहचान खनिज संपदा के अलावा जल जंगल और जनजातीय बहुल प्रदेश से भी जानी जाती है जहां झारखंड की खनिज संपदा के दोहन की खबरें तो सुनते ही रहते हैं वही जनजातीय समुदाय में विशेषकर कुछ ऐसी जनजातिय समुदाय है जो धीरे-धीरे प्रायह विलुप्त होती जा रही है और उसे बचाने को लेकर सरकार जद्दोजहद में लगी हुई है लाखों नहीं करोड़ों खर्च कर इन जनजातियों को विलुप्त होने से बचाए रखने के लिए सरकार खर्च कर रही है मगर विडंबना यह है कि धरातल पर सरकार और उनके अधिकारी उन तक जो सहायता पहुंचा पाने का दम भर्ती है वह अब दम तोड़ती नजर आ रही है हमारा अभिप्राय ऐसे जनजातीय से है जिसे बिरहोर कहा जाता है सरकार इन लुप्त होती बिरहोर जनजातियों को बचाने के लिए इन्हें जगह देकर बसाने का काम किया और मूलभूत सुविधाएं देकर इन्हें समाज के मुख्यधारा से जोड़ने का काम कर रही है बोकारो में गोमिया विधानसभा क्षेत्र के तुलबुल पंचायत, सियारी पंचायत ,कुंदा पंचायत तथा बड़की सीधावारा पंचायत में कुल मिलाकर लगभग 103 परिवारों को मिलाकर लगभग 350 की जनसंख्या होगी जिन्हें मुख्यमंत्री डाकिया योजना के तहत प्रत्येक परिवार को चावल उपलब्ध कराया जाता है बच्चों के लिए निशुल्क शिक्षा सभी बिरहोर परिवार के लिए जिला कल्याण विभाग के द्वारा बिरसा आवास योजना के तहत आवास निर्गत कराया गया है साथ ही मुफ्त चिकित्सा सुविधा, बिजली और पेयजल भी सरकारी योजना के तहत देने का दावा करती है वहीं अगर सीयारी पंचायत अंतर्गत डुमरी विरहोर टण्डा की बात की जय तो यहां लगभग 101 बिरहोर जनजाति को 2013 में बसाया गया रहने के लिए एक कमरे का आवास और खाने के लिए अनाज सरकार इन जनजातियों के लिए व्यवस्था कर दी मगर पेयजल के लिए इन विरहोर को नाले के पानी के भरोसे ही रहना पड़ता है इन्हें आधाकिलो मीटर दूर पैदल जा कर चरक पनिया नाला से पानी भरकर लाना पड़ता है जिससे वे अपनी पीने से लेकर खाना बनाने तक तथा नहाने के लिए भी उसी पानी का इस्तेमाल करना पड़ रहा है सरकार ने इनके लिए बिजली की भी व्यवस्था कर रखी है जिसके लिए इन्हें बिजली बिल का भुगतान नहीं करना पड़ता सरकार के तरफ से आवास और चावल नमक और घासलेट मुहैया करा दी जाती है जिसके बाद सरकार के अधिकारी पलट कर दुबारा संज्ञान भी नहीं लेते आवास की हालत ऐसी है कि बिरहोर अब उस आवास में ना रह कर बगल में झोपडी बनाकर रहने को मजबूर है जब से आवास बना है उसके बाद से इसके खिड़की दरवाजे और छप्पर की हालत ऐसी है की हल्की बरसात भी झेलना मुश्किल है पूरी तरह से सड़ चुके इन छप्पर और खिड़की दरवाजे से बरसात का पानी पूरे कमरे में भर जाता है पीने के लिए जल मीनार भी बनाया गया है और नल भी लगाया गया मगर साल भर हो गए इस नल से पानी यहां रह रहे बिरहोरों को नहीं मिल पाई पुरी आबादी इस नाले के पानी पर आश्रित हो गया है यह नाले का पानी इनलोगों के लिए कितना सुरक्षित है या घातक है यह कह पाना कठिन है मगर इन लोगों के प्रति अधिकारियों की कितनी उदासीनता है जिस पर इनकी नजर यहां नहीं पड़ती वही जब जिला कल्याण पदाधिकार अपनी योजनाओं को गिराने में लगी है लेकिन उन्हें धरातल पर जो स्थिति और समस्याएं बनी हुई है इसकी जानकारी उन्हें नहीं है लेकिन उनके संज्ञान में आने के बाद इसको जांच करा कर जल्द ही समस्याओं को दूर करने का की बात कहते हैं